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________________ २६० समवायांग सूत्र नवासीवां समवाय उसभे णं अरहा कोसलिए इमीसे ओसप्पिणीए तइयाए सुसमदूसमाए पच्छिमे भागे एगूण णउइए अद्धमासेहिं सेसेहिं कालगए जाव सव्व दुक्खप्पहीणे। समंणे भगवं महावीरे इमीसे ओसप्पिणीए चउत्थाए दूसम सुसमाए समाए पच्छिमे भागे एगूण णउइए अद्धमासेहिं सेसेहिं कालगए जाव सव्वदुक्खप्पहीणे। हरिसेणे णं राया . चाउरंत चक्कवट्टी एगूण णउई वाससयाई महाराया होत्था। संतिस्स णं अरहओ एगूण णउइ अजासाहस्सीओ उक्कोसिया अजियासंपया होत्था ॥ ८९ ॥ .. कठिन शब्दार्थ - ओसप्पिणीए - अवसर्पिणी काल के, तइयाए सुसमदुसभाए समाए - सुषमा दुषमा नामक तीसरे आरे के, दूसमसुसमाए - 'दुषम सुषमा। भावार्थ - कौशलिक श्री ऋषभदेव भगवान् इस अवसर्पिणी काल के सुषम दुषमा नामक तीसरे आरे के पिछले भाग में ८९ पक्ष यानी तीन वर्ष साढे आठ महीने बाकी रहे तब सिद्ध बुद्ध यावत् सब दुःखों से मुक्त हुए। इस अवसर्पिणी काल के दुषमसुषमा नामक चौथे आरे के पिछले भाग में जब ८९ पक्ष यानी तीन वर्ष साढे आठ महीने बाकी रहे तब श्रमण भगवान् महावीर स्वामी सिद्ध, बुद्ध यावत् सब दुःखों से मुक्त हुए। दसवां चक्रवर्ती श्री हरिषेण ८९ सौ वर्ष तक चक्रवर्तीपने रहे। श्री शान्तिनाथ भगवान् के उत्कृष्ट ८९ हजार आर्यिकाएं थी॥ ८९॥ विवेचन - प्रथम जिनेश्वर श्री ऋषभदेव स्वामी का सर्व आयुष्य ८४ लाख पूर्व का था। उसे भोग कर जब चौथे आरे के ८९ पक्ष अर्थात् ३ वर्ष ८॥ महीने बाकी थे तब मोक्ष पधारे। इसके लिये शास्त्रकार ने ये शब्द दिये है - 'अंतगडे सिद्धे बुद्धे मुत्ते'। अर्थ - वे अन्तकृत (सब कर्मों का अन्त किया) हुए, सिद्ध (जिनके सब कार्य सिद्ध हो चुके अर्थात् कृतकृत्य हो गये हैं) हुए, बुद्ध (जब तक संसार में थे तब तक भवस्थ केवली थे, मोक्ष में चले जाने के बाद सदा सदा के लिये बुद्ध अर्थात् केवलज्ञानी बन गये) हुए, मुक्त हो गये अर्थात् आठों कर्मों का क्षय हो जाने से सब दुःखों से मुक्त हो गये। इस अवसर्पिणी काल में १२ चक्रवर्ती हुए उसमें दसवें चक्रवर्ती का नाम हरिषेण था। उनकी सम्पूर्ण आयुष्य १०००० वर्ष की थी। कुछ कम ८०० वर्ष तक वे कुमारावस्था में और मांडलिक राजा रूप में रहे। ८९०० वर्ष तक चक्रवर्ती पद रहे। फिर दीक्षा लेकर ३०० वर्ष संयम का पालन कर मोक्ष पधारे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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