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________________ समवाय८८ २५९ भावार्थ - एक एक चन्द्रमा और सूर्य का ८८-८८ महाग्रहों का परिवार कहा गया है। दृष्टिवाद के ऋजुसूत्र परिणतापरिणत आदि ८८ सूत्र कहे गये हैं। जिस प्रकार नन्दीसूत्र में इनका कथन किया गया है उसी तरह यहाँ भी कह देना चाहिए। मेरु पर्वत के पूर्व के चरमान्त से गोस्थूभ आवास पर्वत के पूर्व के चरमान्त तक ८८ हजार योजन का अन्तर कहा गया है। इसी तरह चारों दिशाओं में जानना चाहिए। सर्व आभ्यन्तर मण्डल में पहले छह मास तक भ्रमण करता हुआ सूर्य जब चंवालीसवें मण्डल में जाता है तब मुहूर्त का ६१ भाग दिन को घटाता है और रात्रि को बढ़ा कर सूर्य भ्रमण करता है। दक्षिणायन में सर्वाभ्यन्तर मंडल में सूर्य दूसरे छह मास भ्रमण करता हुआ जब चंवालीसवें मण्डल में जाता है तब मुहूर्त का ६१ भाग रात्रि को कम करके और दिन को बढ़ा कर सूर्य भ्रमण करता है ॥ ८८ ॥ . विवेचन - दृष्टिवाद नामक बारहवें अङ्गसूत्र के 'सूत्र' नामक दूसरे भेद के ८८ सूत्र कहे गये हैं। इसका विशेष वर्णन आगे १४७ वें समवाय में किया गया है। सूर्य छह मास दक्षिणायन और छह मास उत्तरायण रहता है। जब वह उत्तर दिशा के सबसे बाहरी मण्डल से लौटता हुआ दक्षिणायन होता है उस समय वह पृथ्वी मण्डल पर एक मुहूर्त के ६१ भागों में से २ भाग प्रमाण (२.) दिन का प्रमाण घटाता हुआ और इनता ही (२.) रात का प्रमाण बढ़ाता हुआ परिभ्रमण करता है। इस प्रकार जब वह ४४ वें मण्डल पर परिभ्रमण करता है तब वह ( २. x ४४ = ४८.) मुहूर्त के . भाग प्रमाण दिन को घटा देता है और रात को इतना ही बढ़ा देता है। इसी दक्षिणायन से उत्तरायण जाने पर ४४ वें मण्डल में ८ भाग रात को घटा कर और उतना ही दिन को बढ़ा कर परिभ्रमण करता है। इस प्रकार वर्तमान मिनिट सेकिंड के अनुसार सूर्य अपने दक्षिणायन काल में प्रति दिन १ मिनिट ५ १२० सेकिंड दिन की हानि और रात की वृद्धि करता है। इसी प्रकार उत्तरायण काल में प्रतिदिन १ मिनिट और ५१२० सेकिण्ड दिन की वृद्धि और रात की हानि करता हुआ परिभ्रमण करता है। उक्त व्यवस्था के अनुसार दक्षिणायन अन्तिम मण्डल में परिभ्रमण करने पर दिन १२ मुहूर्त का होता है और रात १८ मुहूर्त की होती है तथा उत्तरायण के अन्तिम मण्डल में परिभ्रमण करने पर दिन १८ मुहूर्त का और रात १२ मुहूर्त की होती है। १८४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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