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________________ 58. जं परदो विण्णाणं तं तु परोक्खं ति भणिदमट्टेसु। जदि केवलेण णादं हवदि हि जीवेण पच्चक्खं।। परदो पर से विण्णाणं ज्ञान वह • परन्तु परोक्खं ति परोक्ष ही भणिदमट्टे (ज) 1/1 सवि (परदो) अव्यय पंचमी अर्थक 'दो' प्रत्यय (विण्णाण) 1/1 (त) 1/1 सवि अव्यय [(परोक्खं)+ (इति)] परोक्खं (परोक्ख) 1/1 इति (अ) = ही [(भणिदं)+(अढेसु)] (भण-भणिद) भूक 1/1 अढेसु (अट्ठ) 7/2 अव्यय (केवल) 3/1 वि . (णा) भूकृ 1/1 (हव) व 3/1 अक अव्यय (जीव) 3/1 (पच्चक्ख) 1/1 जदि केवलेण णादं कहा गया पदार्थों को . जो/यदि केवल जाना गया. होता है हवदि जीवेण पच्चक्खं आत्मा से प्रत्यक्ष अन्वय-जं विण्णाणं अटेसु परदो तं परोक्खं ति भणिदं तु पच्चक्खं हवदि जदि केवलेण जीवेण हि णादं। अर्थ- जो ज्ञान पदार्थों को पर (की सहायता) से (जानता है) वह (तो) परोक्ष ही कहा गया (है), परन्तु (वह) (ज्ञान) प्रत्यक्ष होता है, जो/यदि केवल आत्मा से ही जाना गया (है)। 1. कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम -प्राकृत-व्याकरणः 3-135) (70) प्रवचनसार (खण्ड-1) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004158
Book TitlePravachansara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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