SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 57. परदव्वं ते अक्खा णेव सहावो त्ति अप्पणो भणिदा। उवलद्धं तेहि कधं पच्चक्खं अप्पणो होदि।। परदव्वं पर द्रव्य अक्खा इन्द्रियाँ णेव नहीं सहावो त्ति [(पर) वि-(दव्व) 1/1] (त) 1/2 सवि (अक्ख) 1/2 अव्यय [(सहावो)+ (इति)] सहावो (सहाव) 1/1 इति (अ) = इसलिए (अप्प) 6/1 (भणिद-भणिदा) भूकृ 1/2 (उवलद्ध) भूकृ 1/1 अनि (त) 3/2 सवि वरूप अप्पणो भणिदा उवलद्धं तेहि कधं इसलिए आत्मा का कहा गया प्राप्त किया हुआ उनके द्वारा कैसे प्रत्यक्ष आत्मा के लिए होगा अव्यय पच्चक्खं : अप्पणो होदि (पच्चक्ख) 1/1 (अप्प) 4/1 (हो) व 3/1 अक - अन्वय- ते अक्खा परदव्वं त्ति अप्पणो सहावो णेव भणिदा तेहि उवलद्धं अप्पणी पच्चक्खं कधं होदि। __अर्थ- वे इन्द्रियाँ परद्रव्य (हैं), इसलिए (उन्हें) आत्मा का स्वरूप नहीं कहा गया (है)। (तो) उनके द्वारा प्राप्त किया हुआ (ज्ञान) आत्मा के लिए प्रत्यक्ष कैसे होगा (अर्थात् प्रत्यक्ष कैसे कहा जायेगा?) 1. प्रश्नवाचक शब्दों के साथ वर्तमानकाल का प्रयोग प्रायः भविष्यत्काल के अर्थ में होता प्रवचनसार (खण्ड-1) (69) . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004158
Book TitlePravachansara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy