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________________ संगीत-बद्ध-साहित्य-खण्ड २०५ सब तेरे सातर घटै निज पदह जागें। देवियदास कहैं कहूँ न बचै पुनि भार्ग।।५।। क्यों भूलत. (६) राग मलारइह विधि सौं दिन भरिये जगतमहि इह विधि सौं दिन भरिये जीवन परम तथा वस दीरघ तुरत अवैकिन मरिये ।।१।। जगत. हिंसारंभ सकल विधि परिहरि झूठ बचनु न उचरिये। तजि परनारि प्रमान परिगृह तसकरता उदगरिये ।।२।। जगत. विकथावाद विर्षे होई मौंनी सात विसन परिहरिये। देखि समस्त-कुलिंगिय कूटक हर्घ्य-विषाद न करिये ।।३।। जगत. साधि सुपंथ निवारि कुसंगति सत संगति अनुसरिये। कीजे नित अभ्यास जिनागम जिन-अस्तुति उर धरिये ।।४।। जगत. धरि जिनवजन प्रतीति दसाउर भोग-भुजंगम डरिये। देवियदास कहत क्रम-क्रम करि भवदधि पार उतरिये ।।४।। जगत. (७) राग विरावर वसत काल के गाल में जग जीवनि सूगौ। देखि सहज समुझे नहीं अथवत दिन ऊगौ ।।१।। वसत. छिन-छिन प्रति तन छवि घटै दिनु आवत नेरौ। जनम-मरन लखि और को चेतत न सबेरौ ।।२।। वसत. धन कारन डोलत फिरै जोवन तन भूलौ। छिन संतोष धरै ईधन जिम चूलौ ।।३।। वसत. विसयारस को लालची गुर आनि न झलै। कर्म कलंदर बस परयौ मरकट सम खेले ।।४।। वसत. तिन्हि निज गुन सातर गयौ उर अंतर जागे। देवियदास सुकाल के बसतै बचि भागे ।।५।। वसत. (८) राग नट देर' करौ मति देर करौ जिनवर सुमिरत मति देर करौ। आखर फिरि पीछे पछितैहौ आनि धरै जब काल गरौ।।१।।जिनवर. जा परसाद मिटे दुरगति दुख असुभ करमन रहै झगरौ। रमनि सदा सुर नरगति मांही दिन-दिन प्रति अति सुख अगरौ।।२।। जिनवर. १. मूल प्रति में 'ढेर' शब्द है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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