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________________ २०४ देवीदास-विलास (३) राग कनरी जिनवर वचन हमारे मन माना। जा परसाद मिटै विकलप, सव निज परतत्व पिछाना।जिनवर ।१।। हरन विरोध उभै नय निरमल स्यादवाद सुठिकाना।। अटल अनादि अनंत अनोपम उपजावन गुन ज्ञाना।जिनवर. ।२।। औषधि-परम प्रधान सुपीवत विषय विकार वमाना।। अम्रत जरा मरनादिक हरन व्याधि सुखदाना।जिनवर ।३।। प्रापति बिनु तसु जीव जगत मैं भटक्यो होइ दिवाना। जा सम और रसाइनि नांही तिल-तिल करि जग छाना।जिनवर।४।। जाके प्रगट भी उर अंतर सुगम पंथ निरवाना। देवीयदास कहत हम बैठे करि उर तसु सरधाना।जिनवर।५।। (४) गौरी निज निरमल रस चाखा जब हम निज निरमल रसु चाखा। करने की सु कछू अब मोकौं और नहीं अभिलाखा।।१।।जब. सूझि परे परजोग आदि परमन सु अवर तन भाखा। दरसन ज्ञान चरण समकित जुत मूल मुकतितरु आखा।।२।।जब. राग दोष मोहादि परिनमन हेय रूप करि नासा। सुधिर सुद्ध उपयोग उपादे परम धरम उर राखा।।३।।जब. मन की दौर अनादि निधन इम जैसे अथिर पताखा। सो जिहाज पंछी समकीनी थिर जिम दरपन ताखा।।४।।जब. जाननहार हतौ सोई जान्यौ देखनहार सुद्याखा। देवियदास कहत सु समै इक होइ चुक्यौ सब साखा।।५।।जब. (५) राग-विरावर क्यों भूलतु मन वाउरे छिन होतु न सूधौ। मोहि विषै रसिया करे वसु भांति विरुधौ।।१।।क्यों भूलत. रागादिक तैरें बडौ जगमांहि उसीला। जाके बल करिकै सु तूं भुगतै बहु कीला।।२।। क्यों भूलत. पंच सखी पुनि लौंडिया सत्ताइस तेरै। तै उनिकौं पुनि स्वामि या हमकौं किम घे।।३।। क्यों भूलत. मदन भूप बैरी सबै जग जीवनि कैरौ। तैं जिसकी सरवर करै होइ ढीठु न ठेरौ।।४।। क्यों भूलत. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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