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________________ पाठ 18 : धणदेवस्स पुरिसत्थं पाठ-परिचय : उद्योतनसूरि द्वारा रचित कुवलयमालाकहा में कई उपदेशात्मक और प्रेरणात्मक कथाएं हैं । क्रोध, मान, माया, लोभ और मोह के दुष्परिणामों को इस ग्रन्थ में मनोवैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत किया गया है । इसके लिए चार जन्मों की कथा ग्रन्थकार ने प्रस्तुत की है। प्रस्तुत गद्यांश लोभदत्त (धनदेव) की कथा का है। इसमें कहा गया है कि धनदेव यद्यपि धन का लोभी था। किन्तु पिता के द्वारा कमाये गए धन को वह अपना नहीं मानता था । अत: पिता की आज्ञा लेकर वह स्वयं धन कमाने को निकलता है। उसका पिता अपने पुत्र के पुरुषार्थ और उत्साह को देखकर उसे विदेश जाने की अनुमति दे देता है। साथ ही रास्ते में आने वाली कठिनाईयों का सामना करने की शिक्षा भी देता है । इस कथा से यह भी पता चलता है कि उस समय धन का उपयोग जन-कल्याणकारी कार्यों में भी किया जाता था । अस्थि इमम्मि चेय लोए जंबूदीवे भारहे वासे वेयड्ढ-दाहिणमज्झिमखंडे उत्तरावहं णाम पहं । तत्थ तक्खसिला गणाम एयरी । तीए य णयरीए पच्छिम-दक्खिणे दिसाभाए उच्चस्थलं णाम गामं, सग्गरणयरं पिव सुरभोहि. पायालं पिव विविहरयरणेहि, गोटुगरणं पिव गो-संपयाए, धरणयपुरीविय धरण-संपधाए त्ति । - तम्मि गामे सुदृ-जाइनो धरणदेवो णाम सत्थवाहउत्तो । तत्थ तस्स सरिम सत्यवाहउत्तेहिं सह कोलंतस्स वच्चए कालो । सो पुण लोहपरो अत्यपहरण-तल्लिच्छो मायावी वंचनो अलियवयणो पर-दव्वावहारी । तो तस्स एरिसस्स तेहिं सरिस-सत्यवाहजुवारणेहिं धणदेवो ति अवहरिउ लोहदेवो त्ति से पट्टियं गगामं । तो कय-लोहदेवाभिहाणो दियहेसु वच्चंतेसु महाजुवा जोग्गो संवुत्तो। पाकृत गद्य-सोपान 71 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003807
Book TitlePrakrit Gadya Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1983
Total Pages214
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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