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________________ (७०) ॥ अथ गहूंली असावनमी ॥ ॥चरण करणगुण आगरु रे॥ गणधर ॥ गिरुया गौतम खाम ॥ सुहावो गईली रे ॥ सुरगुरु सुरतरु सुरमणि रे । गणधर ॥ प्रगटे जेहने नाम ॥ सु० ॥१॥ नयरी विशाला उद्यानमा रे ॥ गणधर ॥ वईमान वड शि प्य ॥ सु०॥ चौद सहस्र अणगारमा रे ॥ ग० ॥ ति लक समान जगीश ॥ सु०॥॥ सुररचित कज उ परें रे ॥ ग० ॥ बेसी वरसे वयण ॥ सु० ॥ कनकाचल चूला चढ्यो रे ॥ ग० ॥ पुष्कर जलधर अयन ॥ सुग ॥३॥ राणी चेलणा रायनी रे ॥ग० ॥ काल मबूके कान ॥ सु०॥ स्वामी वीरजिणंदनी रे ॥ग ॥ च तुरा चंपकवान ॥ सु॥४॥ कुंकुम रयण कचोलडी रे॥ग ॥ रजत रकेबी हाथ ॥सु० ॥ मुक्ताफलनो साथीयो रे ॥ ग० ॥ सात पांच सखी साथ ॥ सु॥ ॥५॥ पंचाचार उवारणे रे ॥ ग ॥ वारू पंच रतन ॥सु०॥ जिनशासन मुनि दीपतो रे ॥ गण॥ कीजें कोडी जतन || सु०॥६॥ इति ॥७॥ ॥अथ गली जंगणशामी ॥ ॥थाज हजारी ढोलो प्राहुणो॥ ए देशी॥ ॥राजगृही रखीयामणी, जिहां गुणशीलचैत्य सुठा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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