SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (६५) ॥ अथ गहूंली सत्तावनमी ॥ ॥ नदी युमनाके तीर, उडे दोय पंखीयां ॥ ए देश ॥ ॥ ॥ चंपानयरी उद्यानमां, गणधर यवीया ॥ नामे सोहम स्वामी, जविकमन जाविया । विषय प्रमाद कषाय, हास्यादिक तजी ॥ रमता यतमराम के, निजपरीपति जजी ॥ १ ॥ नीरागी जगवान, करे गुण देशना ॥ उपकारी समान के, तारे जविजना ॥ सु वा जिनवर वाण, तिहां याव्या सह ॥ नर नारी ना थोक के, हर्ष मनें बहु ॥ २ ॥ वसन आभूषण व्रत, तथा अंगें धरे ॥ कोएिक जूपति नार, हवे गहूं ली करे || समिति गुप्ति सहियरनी, सायें यावती ॥ आत्म असंख्य प्रदेश, रकेबी लावती ॥३॥ श्रद्धाकुंकु घोली, स्वस्तिक करे जावथी । यतम पीठनी उपर, जिनगुण गावती ॥ विनयवती बहुमानथी, इम गहूं ली कर, अनुजवनां करि लुटणां घ्याणा तिलक घरे ॥ ४ ॥ द्रव्यजावथी एसी परें, जे गहूंली करे | सम कितवंती श्राविका, जब सायर तरे ॥ मणि उद्योत गुरुराजना, गुण सखी मन घरो ॥ पामी मनुज व तार के, शंका नवि करो || ५ || इति ॥ ५७ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy