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________________ (७१) म ॥ साथण मोरी है ॥ सहीयर मोरी हे ॥ बेहेनड मोरी दे ॥ आवो सवा गुरु नेटवा, काई मेटवा कर्म कठोर ॥सा ॥ सम्॥बे ॥ आ॥ मुनि ग णतारा चंद ज्यु, श्राव्या गणधर गौतम स्वाम ॥सा० स० ।। वे ॥ ॥ १ ॥ जेह पंचेंछिय वश करे, वली पाले पंचा चार ॥ सा०॥ जेह पंच समिति गुप्ति धोरी परें, वहे पंच महाव्रत चार ॥ सा ॥ स० ॥ बे॥आ॥२॥ नव वाडे ब्रह्म धरे सदा, वली प रिहरे चार कषाय ॥सा ॥जे सब्धि अहावीशनो धणी, जयो आठ प्रान्नाविक राय ॥ सा समाबे॥ अ०॥३॥ पहेरण पीत पटोलडी, उपर उढण नव रंग घाट ॥ सा॥ कुंकुम रोल सुसाथीयो, करे अक्षत पूरी सुघाट ॥सा ॥सा बे॥ आणामावली ललि ललि कीजें सुबणां, ले रजत कनकनां फूल ॥साणा करो जिन शासन प्रनावना, वजडावो मंगल तूर ॥ ॥सा॥स० ॥ बे ॥या ॥५॥इति ॥५ ॥ ॥ अथ गहूंली शामी ॥ गरबानी देशीमां ॥ ॥ वाला राजगृही उद्यान के, वीर समोसस्या रे लोल के ॥ वाला मलिया चोश इंड के, बहु परि चारशुरे लोल के ॥ वा ॥ १ ॥ वाला वधामणी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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