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________________ (४) ॥अथ गहली चालीशमी ॥ ॥ रूमी रे राजगृही उद्याने, पंचसया मुनिमान हो ॥स्वामि।। श्रावीया गुरु गोयम स्वामी ॥ वनपाले जई राय वधाव्या, हर्ष वधामणी लाया हो । स्वा०॥ ॥श्रा ॥१॥ आव्या वीरतणा आदेशी, कश्ये केवा केशी हो ॥ स्वा० ॥ श्रा० ॥ श्रेणिक अंतेउर सहु तेडी, जीत नगारां गेडी हो ॥ स्वा० ॥ श्रा॥ ॥२॥ चेडा रायतणी तस बेटी, चेलणा गुणमणि पेटी हो ॥ स्वा ॥श्रा॥ श्रेणिक रायतणि पटरा णी, वीरें आप वखाणी हो ॥ स्वा० ॥ था ॥३॥ साथीयडो कीधो लटकालो, मंगल रंग रसाल हो । खा०॥ श्रा॥ ललि ललि गुरुजीने लूणां करती, कीर्तिनां दानज देती हो ॥ स्वा॥ श्रा॥४॥ देश ना सांजली आनंद पामी, धर्म यथोचित राख्यो हो ॥ स्वाणाया॥ उपकारी गुरुना गुण गाती, समकित रतनने चहाती हो ॥ स्वा॥श्रा ॥५॥ श्रीपाल तणीपरें तरसे, शिव रमणी सुख वरसे हो ॥ स्वा० ॥ आ॥ जे कोई गहूली एणी परें करशें, मुक्ति तणां सुख वरश हा ॥ स्वा० ॥आ० ॥६॥शत ॥ ४० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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