SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (ए.) ॥अथ गहूंसी एकतालीशमी ।। ॥ सोहम खामी परंपरा ॥ सुखकारी रे साहेब जी॥ मुनिगुणरत्न नंमार रे ॥ वालो मारो एही रे साहेब जी॥ सूरि बत्रिश गुणे शोजता ॥सुणा धरता माहा व्रत सार रे॥ वालो॥१॥ पंचेंघिय संवरपणे ॥सु॥ नवविध ब्रह्मचर्य धार रे ॥ वा० ॥ पंचाचारज पाल ता।। सु ॥ टाले क्रोधादिक चार रे ॥ वा०॥॥ समिति गुप्ति निजशुरुता ॥ सु ॥ षटकायिक प्रति पाल रे ॥ वा०॥ एहवा गुरुपद सेवीयें ॥ सु०॥पामी यें मंगलमाल रे ॥ वा० ॥३॥ विहार करंता आवी या ॥ सु॥ मुंबई बंदर मकार रे ॥ वा ॥ संघ सक ल अति जावद्युसु०॥ सेवा करे नर नार रे ॥ वा० ॥४॥ अचल गबपति दीपता ॥ सु॥ रत्नसागर सूरिराय रे ॥ वा ॥ प्रेमचंद कहे प्रणमतां ॥ सु॥ संघने कल्याण थाय रे ॥ वा ॥५॥इति ॥४१॥ ॥अथ गहूली बहेंतालीशमी॥ ॥श्रावो हरि सासरिया वाला ॥ ए देशी॥ ॥ चालो सखि वंदनने जश्य, वंदीने पावन तो थश्य ॥ चालो ॥ ए आंकणी ॥ माता त्रिशलाना जाया, धर्म धुरंधर कदेवाया, गुणशील वनमांदे आया Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy