SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४७) तमें समकित नमो निर्धार ॥ रेजि० ॥६॥ रोम रोम हर्षित हुथा ॥ जि० ॥ प्रनु तार तार मुझ तार ॥ रेजि० ॥ न्यायसागर प्रजु नीरखतां ॥ जि०॥ तमे जय जय जणो नर नार ।। रेजि॥७॥इति ॥३०॥ ॥अथ गईली उंगणचालीशमी॥ ॥आर्यदेश नरजर्व लह्यो रे, श्रावक कुल मनोहार रे ॥ जिननी वाणी नित्य सुणे रे, धन्य तेहनो अव तार ।। गुरुने बोखडीये, मोह्या मोद्या रे त्रिनुवन लोक ॥ गुरुने बोखडीये ॥१॥ उठी सवारें प्रजु नमे रे, करे नवकारसी सार रे ॥ शोल शणगार सजी करीने, श्रावे गुरु दरबार ॥गु०॥२॥ त्रण प्रदक्षिणा देश करीने, वांदी बेसे गय रे ॥ उप हाथ अलगी रहि ने, गहूंली पूरवा जाय ॥ गु०॥३॥ चिहुंगति फुःख निवारवा रे, माहामंगल उच्चार रे ॥ श्राप मंगल माहे वडो ने, साथीयो कीजें उदार ॥ गु० ॥४॥व धावे गुरुरायने रे, पजे करे पञ्चकाण रे ॥ खूबणीयां लटके करे ने, नाव जलो मन बाण ॥गु०॥५॥ आगम अर्थने धारती रे, करती विनय विशेष रे ॥ एम आतमने तारती रे, सौनाग्यलक्ष्मी सुविशेष ॥ ॥ गु०॥६॥ इति ॥ ३५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy