SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१०५) जय सुखकार ॥ मो॥ चा० ॥ १० ॥ इति ॥ ७ ॥ ॥अथ गहूंखी नेवुम। ॥ ॥अजित जिणंदशु प्रीतडी । ए देशी ॥ ॥सहियर चतुर चकोरडी, गुण उरडी हो यश्ने उजमाल ॥श्रावो गुरुने नेटवा, उःख मेटवा होसुणी धर्म रसाल ॥ बलिहारी गुणवंतनी॥१॥जुमतिहो होय कोडि कल्याण ॥ बनाए आंकणी ॥ जावत ना जे जव तणी, वलि वाजे हो घरे जीत निशाण ॥ ब लि॥२॥ वलि आतमतत्त्वनी सेवना, शुन देशना हो सुणतां जे रीक॥ तेहिज तत्त्व प्राप्ति तणुं, प्रजु नांख्यु हो आगममां बीज ॥ बलि॥३॥ नमना निगमन वंदनें, गुरु विनयें हो होय लाल अपार ॥ समकित शुरु ग्रही सही, ते वेहेलो हो लहे नवज लपार ॥ बलि ॥ ४ ॥ स्वस्तिक कारण स्वस्तियुं, गुरु आगल हो रचियें मनरंग ॥ कुंकुमरोल कचोल डां, धरि ऊपर हो श्रीफल शुन चंग ॥ बलि ॥५॥ अव्य मंगलथी लावियें, जावमंगल हो दानादिक चोक । उपर साकर संपदा, सहि पामे हो शुनदृष्टि लोक ।। बलिग ॥६॥ चोक पूख्यो गति चारनो, करी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy