SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१०६) फेस हो नवमांहि अनंत ॥ श्रातमराम सुगुरु हवे, मुझ दीजें हो सहि सुख अनंत ॥ बलि० ॥॥इति ॥ ॥अथ गहूंली एका'मी॥ ॥ रूडीने र ढियाली रे समकित श्राविका रे ॥ सज करि शोल जला शणगार, कर धरी रजत रकेबी सार ॥ रूडीने ॥१॥ कुंकुम रूडी मांहे कुंकावटी रे ॥ कुंकुम थाल जस्यो करि श्रीकार, निरखवा चा ली गुरु देदार ॥ रूडीने ॥ २ ॥ सहियर टोली रे साथें मली संचरी रे॥ जई गुरु केरा वंदे पाय ॥ गहूं खी करे शुन चित्त लाय ॥ रूडीने ॥३॥ मंगल क रती रे निज आतम नणी रे॥ वलि जलो कंकणनो करे रणकार ॥ थाय रूडो कांफरनो ऊमकार ॥ रूडी ने ॥४॥ लूणां करती रे गुरुगुण हेजशु रे ॥ श्री फल ग्वती करे रंगरोल ॥ जाणती नथी को गुरुने तोल ॥ रूडीने ॥५॥ मंगल करती हियडे हेजशु रे ॥ वलि सुणी आगमनो समुदाय ॥ नवजल सा यर तरण उपाय ।। रूडीने॥६॥ उत्तम घरनी रे श्रवणें चेतना रे॥सांजली हैयडे हरख न माय ॥प्रेम कहे जिम अमिय समाय ||रूडीनेाणा इतिाए। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy