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________________ (१०४) ता ज्ञान अभ्यास ॥ मो० ॥ चा ॥२॥ पहेलो अध्यातमयोग जे, नावनायोग तेम जाण । मो० ॥ ध्यानयोगें त्रीजो सही, समता योग मन होय ॥ मो०॥चा॥३॥ एम अनेक गुणे शोनता, वीर थाणा लेशमान ॥ मो० ॥ गोयमस्वामी समोसस्या, राजगृही उद्यान ॥ मो॥ चा०॥४॥ श्रेणिकराय आवे वांदवा, सुणी आगमन उदंत ॥ मो० ॥ दायि क समकितनो धर्णी, वांदे गुरु गुणवंत। मो० ॥चा० ॥५॥ श्ण अवसर राणी चेलणा, नाव सजी शण गार ॥ मो॥श्रझापीठ उपर सही, गईली करे म नोहार ॥ मो० ॥ चा० ॥ ६ ॥ तव गोयम दिये देश ना, सेवो नविक सिक चक्र ।। मो॥ आंबिल ली थाराधिये, जिम न पडो जवचक्र ॥ मो० ॥ चा०॥ ॥७॥ पांचे धर्मीने चार धर्म, धर्मी सेव्या धर्म होय ॥ मोरी० ॥ मयणा ने श्रीपालनो, संबंध कहे सवि सोय ॥ मोरी०॥चा ॥७॥ वली नवपदमय यातमा, श्रातम नवपद जोय ॥ मो॥ ध्येय ध्याता ध्यान एकथी, नेद लहो नवि कोय ॥ मोग ॥चा॥ए॥आतमधर्मीने देशना, धारजो हृदय मजार ॥ मो॥ खिमाविजय जस संपदा, शुजवि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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