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________________ २४ श्रीहरिलजसूरिकृतान्यष्टकानि ।। खनो असंजवज जाणवो नहीं; केम के, सुखनु आवरण ज्यारे अपचयधर्मवा , त्यारे ते आवरण तमाम नाशवालुं पण संनवे के केम के, तेना अपचयनो संजव जे; अने तेने माटे पेहेलां वर्णन करेढुंज ; वली श्रा विशेषणथी दाणदाणप्रते क्य थती वस्तुउँने माननाराए ( बौछोए ) मानेला देवना महत्वपणाने दूर कयु: केम के, तेमना एवी रीतना मतथी तेमने तेवा प्रकारना ( शाश्वता ) सुखनो असंनव ; अने ज्यारे एवी रीतनुं शाश्वतुं सुख तेमना महादेवने मलतुं नथी, त्यारे तेमनुं महत्वपणुं तो फक्त कट्पनारूपज बे. वली ते प्रस्तुत महादेव “क्लिष्टकर्मकलातीतः" केतां नवनां हेतुपणाश्री क्वेशरूप एवा जे ज्ञानावरणादिक आठ प्रकारना कर्मोना अंशो, तेनाथी मुकाएला में आ विशेषणथी जे एम माने ने के, “ज्ञानी एवा धर्मतीर्थना करनाराठ मोदमां गया पनी पण फरीने पोताना तीर्थनी पडती जोड्ने, पाग संसारमां आवे बे;" तेए मानेला देवोना महत्वनो व्युदास (नाश) कर्यो. केम के, जो क्लीष्ट कर्मोना अंशोनो अनाव भएलो होय, तो लवमां पागे अवतार थवो असंजवित जे. कडं ने के, अज्ञानपांशुपिहितं, पुरातनं कर्मबीजमवीनाशि ॥ तृष्णाजलाभिषिक्तं, मुंचति जन्मांतरं जंतोः ॥ १॥ अर्थ-अज्ञानरूपी धूलिथी आबादित थएलु, अने पुराणुं, तथा नाश न पामे एवं कर्मरूपी बीज, तृष्णारूपी पाणीथी सिंचावाथी प्राणीने जन्मांतरमा लावी मुके . (वामन, नरसिंह) आदिक नगरांरूपो धरीनवने विषे अवतार खेनारा, अने पोतानां शासन- अपमान नहीं सहन करनारा, एवा ते देवोर्नु महत्वपणुं केवु ?! तथा जे सर्व प्रकारे शरीरना सघला अवयवरहित होय, तेज "महादेव" कहेवाय; कारण के, ज्यारे ते अवयवोनो अनाव थाय, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003686
Book TitleHaribhadrasuri krutanyashtakani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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