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________________ प्रथमाष्टक. २५ मननो त्यारेज सुखनो पण संभव थाय बे. कह्युं वे के, ज्यारे शरीर अने व थाय, त्यारेज दुःखनो पण अजाव थाय; कारण के दुःखना संजवरूप शरीरपणामां ते महत्वपणुं शी रीते संजवे ? वली विशेषणथी ( " सर्वथा निष्कलः " ) एवा विशेषथी ) शरीरें करीने जे महत्वपणाने अंगीकार करे बे, तेना मतनो तिरस्कार कर्यो; केम के, तेज समस्त जगत्ने महादेवना चक्षु, मुख, हाथ, तथा पगथी जरेलुं माने बे; अने तेम श्रबुं तो संजवतुंज नथी, तेथी एवी रीतना पुरुषमां महादेवपणुं पण असंजवितज बे; केम के, समस्त जगत ज्यारे तेनां चक्षुमयज श्रयुं, त्यारे बीजा अवयवोने रहेवाने तो जगतमां कई पण स्थान रह्युं नहीं; माटे तेवा प्रसंगथी तेनुं महादेवपणुं घटी शकतुं नथी; अने ते शिवाय जो कोइ बीजी रीतथी ( पोतानुं ) महादेवपणुं कहेवा मागे, तो तेमना पोतानाज मतने विरोध आवे बे; केम के, ते मनाज शास्त्रमां कह्युं वे के, अपाणिपादो जवनो ग्रहीता, पश्यत्यचक्षुः स शृणोत्यकर्णः ॥ स वेत्ति विश्वं नच तस्य वेत्ता, तमाहुरग्र्यं पुरुषं महान्तम् ॥ १ ॥ " कार्थ- जे हाथ पगवीनां चाली शके बे, तथा ग्रहण करी शके बे, तथा चतुविना जुए बे ने कानविना सांजले बे, वली ते जगतने जाणे बे, पण तेने कोइ जातुं नथी, एवा पुरुषने अग्रेसर महानपुरुष ( महादेव ) कहे बे. ሰ वली बीजाचार्यो या विशेषणाने माटे नीचे प्रमाणे कहे बे. 'क्लिष्टकर्मकलातीतः " केतां नाश करेल बे, घाति कर्मो जेणे एवा जवमां रहेला केवली जाणवा; तथा " सर्वथा निष्कलः " एटले दय थएलां वे जवोपग्राही कर्मो जेना एवा सिकेवली जावा. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003686
Book TitleHaribhadrasuri krutanyashtakani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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