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________________ प्रथमाष्टक. जाव प्रगट करवामाटे विशेषणनी खास जरूर ; केमके, परमाणु शब्दनो अर्थ समजवामाटे "अप्रदेश" (जेना नागो श्रश्न शके तेवू ) एवं विशेषण मुकवु पडे तेम अहीं पण रागर्नु स्वरूप जाणवामाटे “संक्वेशजननो" एवं विशेषण सार्थकज जे. एवी रीते आत्मानां स्वरूपने उपरंजन करनारो राग जेने बिलकुल अंशमात्र पण नथी, तेने महादेव कहीएं. अहीं कोई शंका करे के, उपशांतमोहावस्थामां अथवा उदयनी अपेक्षाए कदाचित रागनां कोइ पण जेदनी अपेक्षाए ते (राग) होय; तो तेने माटे ते वादीने कहे जे के, ते प्रस्तुत महादेवने तो “ सर्वथा" एटखे बंध, उदय अने सत्तानां लदाणवाला विषयराग, स्नेहराग, तथा दृष्टिराग, अव्य, क्षेत्र, काल अने लावथी पण नथी. वली ते महादेवने (उपर कहेलो) केवल रागज नथी, एटलुंज नहीं, पण तेमने प्राणीउपर क्षेष पण सर्वथा प्रकारे नथी. अहीं प्राणीउपर क्षेषनो अनाव कहेवानी मतलब ए के, क्रोध अने मानरूप एवो जे शेष, तेप्राणीउनाज विषयवालो ; अर्थात ते घेष प्राणीउपरज श्राय जे. केमके अजीव पदार्थोपर जे पेष करवो ते मोटी मूर्खाइ जे. केमके, कडुं ने के, किं एतो कठ्ठयरं, मूढो ज थाणुगंमि अप्फडिओ॥ थाणुस्स तस्स रुस्सइ, न अप्पणो दुप्पउत्तस्स ॥१॥ (अर्थ-आथी वधारे मुःखदायक (बीजु) शुंने? के कोइ मूढ माणस फाडनांगसाथे अथडा पडीने, ते उपर गुस्से थाय , पण पोतानी गफलतीप्रते गुस्से थतो नश्री) वली राग तो जीव अने अजीव बन्ने पदार्थोपर थाय ने, माटे ते महाविषयवालो होवाथी तेनुं प्रथम ग्रहण करेलुं बे. अहीं वली वादी शंका करे के, अप्रीतिनां लदाणवालो घेष स्पर्श आदिक विषयोमां अजीव पदार्थोपर पण थाय ; जेम के, कांटा आदिकनो स्पर्श अवाथी तेनापर क्षेष थाय ने, अने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003686
Book TitleHaribhadrasuri krutanyashtakani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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