SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीहरिजप्रसूरिकृतान्यष्टकानि। श्रा महादेवने तो सर्वथा प्रकारे क्षेष नथी, माटे "प्राणीउपर तेने घेष नथी" एम कहे, अयुक्त जे. . त्यारे वादीने कहे ने के, एम नहीं;प्राणीउपर क्षेष नथी, एटले वैरीरूप एवा अन्य दर्शनीउपर पण श्रा महादेवने घेष नथी; केम के, आ वात तो लोकोमां पण प्रसिद्ध के के, सरखेसरखाउमां आपसापस अदेखा होय जे; अने एवी रीते जेने ज्यारे शत्रु अथवा मित्रपर पण क्षेष नथी, त्यारे ते महादेवने अजीव पदार्थोपर वेष तो बिलकुल संनवेज नहीं. अर्थात ते महादेवने जेम जीवपर क्षेष नथी, तेम अजीवपर पण शेष नथी. हवे ते केवो शेष नथी ? ते कहे . क्षमा आदिकना जावरूप जे काष्ठ, तेने बालवाने दावानल सरखो क्षेष नथी. हवे ते महादेवने उपर कहेला रागषेषज नथी, एटलुंज नहीं, पण जेने सर्वथा प्रकारे मोह पण नथी; हवे ते मोह केवो, ते कहे . - यथार्थ पदार्थोने देखाडनारं, अथवा उत्तम पदार्थोनुं जे झान तेने आचादन करवानो ने स्वजाव जेनो, तथा कलंकयुक्त चेष्टा करनारो, एवो मोह आ प्रस्तुत महादेवने नथी. __ वली जेनो महिमा त्रणे लोकोमा प्रख्यात ,तेने “महादेव" कहियें; केम के, सघला मनुष्योनां समूह, देव, इंश आदिकने कदर्थना करवामां समर्थ एवा रागादिक शत्रुऊनां समूहने दूर करवामां जे समर्थ होय, तेनोज ा त्रण जगतमां महिमा गवाय , अने तेज उत्तम पुरुष माणसोनां समूहमां मुकुटसमान वे. कडुं ने के, रागद्वेषमहामोहः, कर्थितजगजनैः॥ नाभिभूतं मनो यस्य, महिना तस्य कःक्षमः॥२॥ . (अर्थ-मुःखी करेल ने जगतनां लोकोने जेणे, एवा राग, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003686
Book TitleHaribhadrasuri krutanyashtakani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy