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________________ भाषान्तर सहित. १० माटे हवे एने जत्रा देवो नही. पढी तेणे सेवकोने कयुं जे, एने गरदन मारो हुकम मलतां तरतज सेवकोए सहस्रमल साधुने लाकमीयो, बंडुकनी मोहरीयो, अने तरवारनी मुगे वडे मारवा मांड्यो; तथा धूलनी पोटलीन, ढेफां ने देखा ले करी सदन न थ शके एवो उपसर्ग कर्यो. साधु वे तो घणायें बलवंत ! जो ए पूर्वनी परें पराक्रम करे तो राजाना सघला सेवको नूरस्वाननी पेठे नाशी जाय. परंतु एटली शक्ति बतां पण ते फोरवता नथी तेनुं कारण ए वे जे, चारित्रना घरमां रखेने निजगुणमां खामी लागे, एम विचारीने समतावंत थयावे. जेटला पराजव थया तेटला तेमणे सहन कर्या. लेशमात्र क्रोध कर्यो नहीं. एम समता परिणामनी सेढीये चढतां चढतां सहस्रमल साधु अंतगम केवली थईने मोदी पधार्या कन्युं वे के, एवा साधुजीने व कायना जीव साथे मित्राई बे. माटे साधु जननी साथे मित्राई करवी. २० इह सहज सनेदे जे लढे मित्रताई, रवि परि न चले ते कंजज्यं बंधुताई ॥ दरि हलधर मैत्री कृश्नने जे मासे, दलधर निज खंधे से फिस्यो जीव यासे ॥ २१ ॥ जावार्थ: जेम सूर्य चलवानो नही ( चलायमानयतो नथ ) तेम सहज वजावीनी साथे जे मित्राई होय बे ते मव्या पी विडे नही; अर्थात् मित्राई न बांडे, ते कोनी परे ? तो के - कृश्नाने वलनी परे, एटले जेम बलभद्र व मास सुधी कृश्न जीवता वे एव श्राशाए तेमना सबने पोताना खन्ना उपर लेईने फर्या, खरी मित्राई राखी, तेवी रीते सर्व मनुष्ये मित्राई राखावी. कंजज्यूं ” ने + बीजी प्रतमां " लहे " ने बदले " बधे " अने बदले " काजज्यूं ” शब्द बे. २७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ** 66 www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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