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________________ सुक्तमुक्तावली धर्मवर्ग ॥ अथ विषय विषे ॥ शिवपद यदि वांबे जेद यानंद दाई, विषसम विषया तो बांड दे इःखदाई ॥ मधुर अमृत धारा दूधनी जो लहीजे, प्रति विरस सदा तो कांजिका स्युं ग्रहीजे ॥ ६७ ॥ नावार्थ:- जो ए आत्माने आनंदने यापवावाला मोक्षपदने पामवानी ईवा होय तो विष (केर ) समान दुःख देवावाला विषयने तजी दे, जो मीठी अमृत जेवी दूधनी धारा मली तो अत्यंत विरस - स्वाद विनानी कांजी होय तेने कोण ग्रहण करे, अर्थात् दूधनी धारा समान मोक्षपद पामवानी ईछावालो कांजी समान विरस या मद, ( १ पोतानी जातिनो मद, १ पोतानो बहु धननो लान मद, ३ पोताना कुलनो मद, ४ पोतानी लक्ष्मीनो मद, ५ पोताना बलनो मद, ६ पोताना रूपनो मंद, ७ पोताना तपनो मद, पोताना ज्ञाननो मद) केम करे ? न ज करे. ६७ विषय विकल ताण कीचके जीम जार्या, दशमुख - पहारी जानकी रामनार्या ॥ रति धरि रहनेमी देखी श्री ने मिजार्या, जिण विषय न वर्ज्या तेद जाणो अनार्या ॥ ६८ जावार्थ:- विषयना विकलपणाये करीने एटले विषयनां वाह्या थकां वेराट राजाना सो साला मध्येना वमा कीचके जीमनी जार्या एटले पांडवोनी पत्नी द्रौपदीने ताणी - खेंची, वली विषय की दशमूख एटले रावणे रामनी स्त्री जानकी ( जनकराजानी पुत्री सीता) नुंदर कयुं, (तेथे सोए किचक थाने रावण मर्ण पाम्या) वली कंदर्पना धरणहार रहनेमीए पोताना सरखी चारित्रवंत श्रीनेमनाथनी जार्या राजेमतीने वस्त्र रहित महाखरूपवान देखीने तेना प्रत्ये विषयी प्रार्थना करी, परंतु सती साध्वी राजेमतीए अगंधन जातिनानागादिना दृष्टांतादि देखामी तेने मार्गमां श्राण्या अर्थात् मन १६२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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