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________________ नाषान्तरसहित. १३१ कहेतां तत्काल तेमना शरीरप्रमाणे उंचो साडा बार कोड सोनश्यानो ढगलो थयो. पूर्वे (प्रथम ) गणीकाए वचन कह्यां सीला, पडी मुनिये करी देखाड्या पीला. ते देखीने गणीका चमत्कार पामी. मुनि त्यांथी पाला वलवा लाग्या एटले फट जश्ने गणीका श्राडी उनी रही अने बेडो पकडीने बोली के-अरे स्वामी! अम अबला उपर रीस धरीने केम जाउँ हो ? तमारे जq होय तो तमारो ए माल दे जाउँ, के अम साथे रही जोगवो. एहवे ( तेवेला) आकाशे वाणी थई जे- तमारे एनीज साये बार वर्ष जोगनो उदय जे ते नहीं मिटे! एवं सांजली नंदीखेण उघो मुहपत्ति उंचे वलगामीने त्यां (वेश्याना घरमां) रह्या. परंतु आत्माने विषे शुद्ध दर्शन खरेखलं .अत्यंतरना गुण निर्मल बे. जेनी शुद्ध दशा ले ते ए बाह्यकारण निमीत्तकारण अनुनव्या विना आत्माने निर्मल न थाय ( न करी शके ) एवी जावदिशा श्राणीने नंदीबेणे प्रतिज्ञा करी के, नित्य नित्य दश प्राणीने प्रतिबोध पमाडवा. एवी रीते बार वर्षसुधी गणीकाना घरमां तेनी साथे लोग जोगवता रह्या उतां प्रतिज्ञा प्रमाणे बेतालीस हजारने प्रतिबोध देई प्रनु तथा थिवीर पासे मोकली दीदा लेवरावी. एम करतां बारे वर्षे जोगकर्म पूरां थयां त्यारे नव जणने प्रतिबोध्या बाद दशमो एक सोनी मल्यो. ते कहे के, तमे सर्वने प्रतिबोध यो बोअने पोते तो कामक्रीडा करोगे! तमे केम प्रतिबोध पामता नथी ? तेवा समयनेविषे रसोई तैयार थयेली होवाथी गणीका वाट जोई रही हती के हमणां आवशे. एम वाट जोतां जोतां घणी वार थई तेथी रसोई टाढी थई गई. एटले गणीका तेमनी पासे श्रावी अने नोजनार्थ पधारवानी विनती करी. नंदीखेणे कयु के, श्रावीये बीये! गणीका पानी गई.नवी रसोई तैयार करी.जमवाने काजे श्राकली थतीगणीकाए Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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