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________________ तृतीय प्रकाश. जी जीव उत्पन्न थतो नथी; ते उत्पत्तिना प्रथम समये एकत्र थयेल पिता संबंधी वीर्य अने माता संबंधी शोणित तेने ते जीव आहारपणे ग्रहण करें छे, ते आहारने ओज आहार कहेवामां आवे , ते ओज आहार अपर्याप्त अवस्था सुधी होय छे, ते पड़ी ज्यारे ते पर्याप्त थाय , त्यारे ते गर्नमां रहेला जीवने लोमाहार होय . ते जीवने आश्रीने रहेब शुक्र अनै शोणित अन्य सात दिवस सुधी कलल रुपे होय जे अने ते सात दिवस पी परपोटा रुपे रहे .. ते परी पेहेंले मासे ' कर्पोपल' एवा प्रमाणनी मांसनी पेशी रुपे बने जे. बीजे मासे ते निविममांसपिमिका थाय ने, जीजे मासे ते माताने दोहद उत्पन्न करे . चौथे मासे माताना अंगने पीडा उत्पन्न करें में. पांचमें मासे ते जीवनी मांस पिंडिकामांथी अंकुरानी पेठे बे हाथ, वे पग अने मस्तक-एम पांच अवयव निष्पन्न करे . बठे मासे पित्त अने शोणितने बनावे . सातमे मासे सातसो नसो, पांचसो मांसपेशी नव धमनी नामीविशेष अने सामात्रण कोटी रोमराजी, निष्पादन करे , आठमे मासे लगार ऊणो नत्पन्न करे ने अने नवमे मासे सुनिष्पन्न सर्व अंगोपांग वालो जीव वनी जाय जे. ते गर्भावस्थामां माताना जीवनी रस हरनारी तथा संततिना जीवनी रस हरनारी जेबे नामीओ होय जे, तेश्रोमां पहेली माताना जीवनी साथे बंधाएल उतां संतानना जीवने स्पर्शेली , तेथी संताननो जीव माताए जोगवाता अनेक प्रकारना रसविगयनो एक देशे करीने ओज आहारने ग्रहण करे , वीजी नामी जे संततिना जीवनी साथे बंधाएल ते माताना जीवने स्पशैली छे, ते नाडीवमे जीव पोताना शरीरने वृधि पमामे , परंतु ते अवस्थामां ते कवत आहारने ग्रहण करतो नथी; तेथी तेने उच्चार (कामो ) तथा प्रस्रवण (मूत्र ) संभवता नथी तेम वली ते जीव जे आहार अव्य ग्रहण करे , ते पोतानी श्रोत्रादिक इंजियो अने अस्थि, मज्जा, केश, रोम अने नखपणे परिणमे . ते गर्नमा रहेलो जीव माताना शयन वखते सुइ जाय जे अने मातानी जागृत अवस्थामां जागे . माता सुखी एटले ते पण सुखी होय . एवी रीते कमना उदयथी जीव उत्कृष्ट अंधकारमा अशुचि नरेखा गर्नस्थानमां महा सुख अनुजवतो रहे छे. ज्यारे नव मास अतीत यतां ते पुरुष, स्त्री, नपुंसक अने बि Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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