SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 404
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६२ श्री आत्मबोध. ए चारमां हरको रुपे प्रसवाय बे. जो शुक्र अल्प होय अने शोणित विशेष होय तो स्त्री, शुक्र विशेष ने शोणित अल्प होयतो पुरुष अने शुक्र अने शोणित समान होय तो नपुंसक जन्मे बे. जो केवल शोणितनों ज योग होयतो मांसना पिंरुप बिंब प्रगटे बें. वली कोइ प्राणी माताना उदरमां उत्पन्न ययेलो होय परंतु घणा पापे करीने पराभूत थयेलो होय तो ते वात तथा पित्तादिकव में दूषित थवा देवतादि स्तंजित करेलो होवाथी दरारहित बार वर्ष सुधी त्यांने त्यां (गर्भमां ) रहे बे एटले वार वर्षे वीत्या पनी जन्मे बे, बोकमां ते बोम - चोडना नामथी ओळखाय बे. आ प्रमाणे गर्जनी भवस्थिति कहेवाय बे. तेनी जे काय स्थिति बे, ते मनुष्यने चोवीश वर्षेनी बे-ते प्रमाणे - कोइ जीव बोमरूपे वार वर्ष गर्नमा रही अंते मृत्यु पामी वा प्रकारना पुष्ट कार्यना योगी त्यांज गर्नमा रहेला कलेवरमांज उत्पन्न थाय के अने उत्पन्न थ‍ मांज बार वर्ष सुधी रहे बे-एवी रीते उत्कृष्टो चोवीश वर्ष सुधी तेनो गर्ना - वास थाय बे. तिर्यच जीवो तिरवीना गर्भमां उत्कृष्टथी आठ वर्ष सुधी रहे छे, ते पनो विनाश अथवा प्रसव पण थाय बे. स्त्रीनी गर्नोत्पत्तिनी योग्यता ने पुरुषमा वीर्यनी गर्भाधान करवानी योग्यताने माटे या प्रमाणे लखेलुं बें—स्त्रीनी योनि पंचावन वर्ष पर्यंत अम्लान होवाथी गर्जने धारण करी शके छे अने ते पछी आवनो अभाव होवाथी तेनी योनि म्लान थइ जाय छे, तेने माटे निशीथ चूर्णीमां या प्रमाणे कहेतुं बे"इथिए जाव पपन्नावासा न पूरयंति ताव अमिलिआणाय जोणी” नो अर्थ उपर दर्शावेलो डे. पुरुष पंचोतेर वर्ष सुधी गर्भाधानने योग्य एवा वीर्यवालो होय बें; ते पनी ते प्राये करी वा वीर्यथी रहित यह जाय बे. ते विषे पण निशीथ चूणीमां कहेल बे-- सो वर्षनी आयुष्यवाला नी अपेक्षा समजवं. सो वर्षनी गल वसो, नसो, चारसो इत्यादि पूर्व कोटी होय. स्त्री जेटलं आयुष्य होय, ते सर्व आयुष्यांथी अर्ध आयुष्य पर्यंत म्लानपणा रहित होवाथी ते गर्भ धारण करवाने समर्थ होय . अने पुरुषने तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy