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________________ श्री आत्मप्रबोध. मोत्तुं जिणंदधम्म, न भवांतरगामिओ अन्नो" ॥ १॥ पेहेली गाथानो अर्थ उपर दर्शाव्यो छे. बीजी गाथानो अर्थ आ प्रमाणे . " कुटुंब पण अन्य छे, आ लक्ष्मी पाण अन्य जे अने आ शरीर पण अन्य छे. श्री जिनधर्म शिवाय नवांतरमा आवनार को बीजें नयी." २ ६ उठी अशुचि भावना कहे जे-" रस, रुधिर, मांस, मेद, अस्थि, शुक्र, अने मज्जा-ए सात धातुमय श्लेष्म तथा मन्त्र, सूत्र, पुरीप, त्वचा, आंतरमा अने ओरना समूहवडे वीटाएवं अने सर्व काले कृमि, रोग, गंडोला आदिथी नरेखें आ औदारिक शरीर तत्वष्टिए जोतां महा अशुचिवालुं छे. ते एक अद्भुत आत्मधर्म विना का प्रकारे शुचि थाय ? कदिपण थाय नहीं. वली जे आवा शरीरने केवन जलादिवडे शुध करवा छे छे ते तत्त्वथी विमुख अने अज्ञानी जाणवा" या प्रकारे जे चितवन करवू, ते अशुचि भावना कहेवाय छे. तेने माटे आ प्रमाणे लखे छे " मेयवसरे अमनमुत्त पूरिअं चम्म वेढिअं तत्तो। जंगममिव वच्चहरं कहएयं सुझए देहं ” ॥ १॥ आ गाथानो अर्थ उपर दर्शाव्यो -हवे तंत्र वियावि प्रकीर्णने अनुसारे ते औदारिक शरीरनुं गर्जाधानथआरंजीने कांक विशेष अशुचिर्नु स्वरूप देखामे में. स्त्रीनी नाजिनी नीचे पुष्पनालने आकार के नाम से, तेनी नीचे अधो मुखी कमलना कोशने आकारे जीवनी नत्पति स्थान रुप योनि होय . तेनी नीचना नागमा आंबानी मांजरीना जेवी एक मांसनी मंजरी छे, ते मंजर। ऋतु वखते फुटी रुधिरना विंचुओने मुके . ऋतुकाल वीत्या पी एटले त्राण दिवस पछी ते कमलना कोशना आकारवाली योनिने विष प्रवेश करे डे, पठी पुरुषना संयोगथी पुरुषना शुक्र (वीय ) नी साथे मिश्र थाय , त्यारे झानी महाराजाए ते योनि जीवने उपजवा योग्य कहेली ने ते स्थने वार मुहूर्त सुधी ते शुक्र अने शोणित अविनाशी योनीपणे थाय ने अने बार मुहूर्न पठी विनाशी योनिपणाने पामे ने तेथी ते वार मुहूर्त सुधीमा जीवनी उत्पति ; ते वार मुहूर्त्त प. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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