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________________ 496 ] [ ज्ञाताधर्मकथा ७–तए णं ते बहवे दारगा य दारिगा य डिभगा य डिभिया य कुमारा य कुमारिया य रोयमाणा य जाव अम्मापिऊणं णिवेदेति / तए णं ते आसुरुत्ता रुट्टा कुविया चंडिक्किया मिसिमिसेमाणा जेणेव धण्णे सत्यवाहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता बहूहि खिज्जणाहि य जाव* एयमढें णिवेदेति / तब वे बहुत लड़के, लड़कियाँ, बच्चे, बच्चियाँ, कुमार और कुमारिकाएँ रोते-चिल्लाते गये, यावत् माता-पिताओं से उन्होंने यह बात कह सुनाई। तब वे माता-पिता एकदम क्रुद्ध हुए, रुष्ट, कुपित, प्रचण्ड हुए, क्रोध से जल उठे और धन्य सार्थवाह के पास पहुंचे / पहुंच कर बहुत खेदयुक्त वचनों से उन्होंने यह बात उससे कही। दास-चेटक का निष्कासन ___८-तए णं से धण्णे सत्यवाहे बहूणं दारगाणं दारियाणं डिभयाणं डिभियाणं कुमारगाणं कुमारियाणं अम्मापिऊणं अंतिए एयमझें सोच्चा आसुरुत्ते चिलायं दासचेडं उच्चावयाहि आउसणाहि आउसइ, उद्धंसइ, णिन्भच्छेइ, णिच्छोडेइ, तज्जेइ, उच्चावयाहिं तालणाहि तालेइ, साओ गिहाओ णिच्छुभइ / तब धन्य सार्थवाह बहुत लड़कों, लड़कियों, बच्चों, बच्चियों, कुमारों और कुमारिकाओं के मात-पिताओं से यह बात सुन कर एक दम कुपित हुआ / उसने ऊँचे-नीचे आक्रोश-वचनों से चिलात दासचेट पर आक्रोश किया अर्थात् खरी-खोटी सुनाई, उसका तिरस्कार किया, भर्त्सना की, धमकी दी, तर्जना की और ऊँची-नीची ताड़नाओं से ताड़ना की और फिर उसे अपने घर से बाहर निकाल दिया। दास-चेटक दुर्व्यसनी बना ९-तए णं से चिलाए दासचेडे साओ गिहाओ णिच्छूढे समाणे रायगिहे नयरे सिंघाडए जाव पहेसु य देवकुलेसु य सभासु य पवासु य जयखलएसु य वेसाघरेसु य पाणघरएसु य सुहंसुहेणं परियट्टइ। तए णं चिलाए दासचेडे अणोहट्टिए अणिवारिए सच्छंदमई सइरप्पयारी मज्जपसंगी चोज्जपसंगी मंसपसंगी जूयप्पसंगी वेसापसंगी परदारप्पसंगी जाए यावि होत्था / धन्य सार्थवाह द्वारा अपने घर से निकाला हुआ यह चिलात दासचेटक राजगृह नगर में, शृंगाटकों यावत् पथों में अर्थात् गली-कूचों में, देवालयों में, सभाओं में, प्याउओं में, जुआरियों के अड्डों में, वेश्याओं के घरों में तथा मद्यपानगृहों में मजे से भटकने लगा। उस समय उस दासचेट चिलात को कोई हाथ पकड़ कर रोकने वाला (हटकने वाला) तथा वचन से रोकने वाला न रहा. अतएव वह निरंकुश बद्धि वाला. स्वेच्छाचारी, मदिरापान में ग्रासक्त. चोरी करने में आसक्त, मांसभक्षण में प्रासक्त, जुत्रा में पासक्त, वेश्यासक्त तथा पर-स्त्रियों में भी लम्पट हो गया। . 1. अ. 18 सूत्र 2. 2. अ. 18 सूत्र 5. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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