SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 573
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अठारहवां अध्ययन : सुसुमा ] [495 कुमाराण य कुमारीण य अप्पेगइयाणं खुल्लए अवहरइ, एवं बट्टए आडोलियाओ तेंदूसए पोत्तुल्लए साडोल्लए, अप्पेगइयाणं आभरणमल्लालंकारं अवहरइ, अप्पेगइए आउसइ, एवं अवहसइ, निच्छोडेइ, निभच्छेइ, तज्जेइ, अप्पेगइए तालेइ / उस समय वह चिलात दास-चेटक उन बहुत-से लड़कों, लड़कियों, बच्चों, बच्चियों, कुमारों और कुमारियों में से किन्हीं की कोड़ियाँ हरण कर लेता-छीन लेता या चुरा लेता था / इसी प्रकार वर्तक (लाख के गोले) हर लेता, प्राडोलिया (गेंद) हर लेता, दड़ा (बड़ी गेंद), कपड़ा और साडोल्लक (उत्तरीय वस्त्र) हर लेता था। किन्हीं-किन्हीं के आभरण, माला और अलंकार हरण कर लेता था। किन्हीं पर आक्रोश करता, किसी की हँसी उड़ाता, किसी को ठग लेता, किसी को भर्त्सना करता, किसी की तर्जना करता और किसी को मारता-पीटता था। तात्पर्य यह है कि वह दास-चेटक बहुत शैतान था। दास-चेटक की शिकायतें ५-तए णं ते बहवे दारगा य दारिया य डिभया य डिभिया य कुमारा य कुमारिगा य रोयमाणा य कंदमाणा य सोयमाणा य तिप्पमाणा य विलक्माणा य साणं-साणं अम्मा-पिऊणं णिवेदेति। तए णं तेसि बहूर्ण दारगाण य दारिगाण य डिभाण य डिभियाण य कुमाराण य कुमारियाण य अम्मापियरो जेणेव धण्णे सत्यवाहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्सा धण्णं सत्थवाहं बहहिं खिज्जणाहि य रुटणाहि य उवलंभणाहि य खिज्जमाणा य रुटमाणा य उवलंभेमाणा य धण्णस्स एयमझें णिवेदेति / तब वे बहुत-से लड़के, लड़कियां, बच्चे, बच्चियाँ, कुमार और कुमारिकाएँ रोते हुए, चिल्लाते हुए, शोक करते हुए, आँसू बहाते हुए, विलाप करते हुए जाकर अपने-अपने माता-पिताओं से चिलात की करतूत कहते थे। उस समय बहुत-से लड़कों, लड़कियों, बच्चों, बच्चियों, कुमारों और कुमारिकाओं के मातापिता धन्य सार्थवाह के पास आते / आकर धन्य सार्थवाह को खेदजनक वचनों से, रुवासे होकर उलाहने भरे वचनों से खेद प्रकट करते, रोते और उलाहना देते थे और धन्य सार्थवाह को यह वृत्तान्त कहते थे। ६-तए णं धण्णे सत्थवाहे चिलायं दासचेडं एयमठे भुज्जो भुज्जो णिवारेति, णो चेव णं चिलाए दासचेडे उवरमइ / तए णं से चिलाए दासचेडे तेसि बहूणं दारगाण य दारिगाण य डिभयाण य डिभियाण य कुमारगाण य कुमारिगाण य अप्पेगइयाणं खुल्लए अवहरइ जाव तालेइ। तत्पश्चात् धन्य सार्थवाह ने चिलात दास-चेटक को इस बात के लिए बार-बार मना किया, मगर चिलात दास चेटक रुका नहीं, माना नहीं / धन्य सार्थवाह के रोकने पर भी चिलात दासचेटक उन बहुत-से लड़कों, लड़कियों, बच्चों, बच्चियों, कुमारों और कुमारिकाओं में से किन्हीं की कौड़ियाँ हरण करता रहा और किन्हीं को यावत् मारता-पीटता रहा / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy