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________________ 181 तृतीय अध्ययन : प्रथम उद्देशक : सूत्र 474-82 475. से भिक्खू वा 2 पुन्वामेव तिरिच्छसंपातिमं णावं जाणेज्जा, जाणित्ता से तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, 2 (त्ता] भंडगं पडिलेहेज्जा, 2 [त्ता] एगाभोयं भंडगं करेज्जा, 2 (त्ता] ससोसोवरियं कायं पाए (य) पमज्जेज्जा, 2 [त्ता] सागारं भत्तं पच्चक्खाएज्जा, 2 [त्ता) एगं पायं जले किच्चा एगं पायं थले किच्चा ततो संजयामेव णावं दुरुहेज्जा / 476. से भिक्खू वा 2 णावं दुरुहमाणे णो णावातो पुरतो दुरुहेज्जा, णो णावाओ' मग्गतो दुरुहेज्जा, णो णावातो मतो दुरुहेज्जा, णो बाहाओ पगिझिय 2 अंगुलियाए उद्दिसिय 2 ओणमिय 2 उष्णमिय 2 णिज्झाए ज्जा। 477. से गं परो गावागतो णावागयं वदेज्जा–आउसंतो समणा ! एतं ता तुमं णावं उक्कसाहि वा वोक्कसाहि वा खिवाहि वा रज्जए वा गहाय आकसाहि। णो से तं परिण' परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा। 478. से गं परो गावागतो णावागतं वदेज्जा--आउसंतो समणा ! णो संचाएसि तुम णावं उपकसित्तए वा वोक्कसित्तए वा खिवित्तए वा रज्जुए वा गहाय आकसित्तए. आहर एयं णावाए रज्जुयं, सयं चेवं गं वयं णावं उक्कसिस्सामो वा जाव रज्जूए वा गहाय आकसिस्सामो। णो से तं परिणं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उबेहेज्जा। 476. से गं परो णावागतो णावागयं वदेज्जा-आउसंतो समणा ! एतं ता तुम णावं भलितण वा पिट्टेण वा वंसेण वा वलएण वा अवल्लएण वा वाहेहि / णो से तं परिणं जाव उवेहेज्जा। __ 480. से णं परो णावागतो णावागयं वदेज्जा–आउसंतो समणा! एतं ता तुमं णावाए उदयं हत्येण वा पाएण वा मत्तेण वा पडिग्गहएण वा णावास्सिचणएण वा उस्सिचाहि। णो से तं परिणं परिजाणेज्जा [0] / ___ 481. से णं परो णावागतो णावागयं वएज्जा--आउसंतो समणा ! एतं ता तुम 1. 'णावातों के स्थान पर 'णावाएं पाठान्तर है। अर्थ है-नाव पर। 2. चणिकार.-'णो से तं परिणं परिजाणेज्जा'--का तात्पर्य समझाते हैं.--'ण तस्स तत्प्रतिज्ञ' 'परिया ज्जा' आढाएज्जा करिज्ज वा / तुसिणीओ 'उबेहेज्जा अच्छिज्जा ।'-उसकी उस प्रतिज्ञा-प्रार्थना को आदर न दे, न माने न करे। मौन रहे. उपेक्षाभाव रखे। 3. यहाँ जाब शब्द सूत्र 477 के अनुसार उक्कसिस्सासो से लेकर रज्जूए तक के पाठ का सूचक है। तुलना कीजिए---'जे भिक्खू णावं अलित्तण वा पिछेण (पप्फिडएण) वा वसेण वा वलएण वा वाहेइ, वाहतं वा सातिज्जति.......।' ---निशीथ चूणि 18/17. 5. [0]ऐसा चिम्ह जहाँ-जहाँ है, वहाँ-वहाँ उसका अवशिष्ट सारा पाठ समझ लेना चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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