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________________ XTor 21 RE Pos IRLFARE WNIONUR DO ३ सत्कार (वस्त्रालंकारादि से) २ पूजन (पुष्पादिसे) Hapoo000 १ वंदन ४ सन्मान (स्तुति आदि से) ५ बोधिलाभ आरहतचइयाण मानिस ६ निरुपसर्ग (मोक्ष) श्रद्धा मधाशद्धशास्त्रग्रहण धति दःखविन्वागत धारणा चित्तोपयोगदहता जीवादितच्च प्रतीति से के आकर कौशल्य से मनःसनाधिरुप धैर्य से अविस्मरण से अनुप्रेक्षा वार्थानुचिंतन से श्रद्धा से, शरम-बलात्कार से नहीं मेधा से. जडता से नहीं धृति से, रागद्वेषादि-व्याकुलता से नहीं धारणा से, चित्त की शून्यतासे नहीं अनुप्रेक्षा से, तत्त्वार्थचिंतन के बिना नहीं जलशोधकमणिवत् औषध के समान विन्तामणि-समान जिनोक्त मोतीमाला में परोये मोतीबत आगरन से कर्ममलशोधक अग्निसन वित्तमालिन्यशोधक वितरोगनाशक सम्राकार चितरोगनाशक सम्यक्शासा के धर्म की प्राप्ति से दुःख चिन्तनपदार्थों अनुप्रेक्षा से अनुभूत SIG I ational ग्रहण-आदर-काशल्य नाविन्तामुक्ति का दृढ संकलनधारणा (अर्थाभ्यासविशेष-परम संवेगदरता अधिकाधिक संपत्ताकर्मनाशकेतलजाब
SR No.003233
Book TitlePratikraman Sutra Sachitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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