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________________ हियएण - हृदय से ('संथुओ' = स्तुति किये). ता देव दिज्ज - अत: हे देवाधिदेव ! दीजिए बोहिं - बोधि (सम्यक्त्व जैनधर्म-प्राप्ति) भवे भवे - प्रत्येक भव में . पास जिणचंद - हे पार्श्व-जिनचंद्र ! भावार्थ जो उपद्रवों के हर्ता पार्श्वयक्ष वाले हैं, अथवा जो स्वत: उपद्रवहर हैं और आशाओं (तृष्णाओं) से मुक्त हैं, चारों घाती कर्मों से रहित हैं, जो नामस्मरण द्वारा सर्पो का विष दूर करते हैं, (जो मिथ्यात्व आदि दोषों को दूर करते हैं), तथा जो मंगल (विघ्ननाशक तत्त्वों) और कल्याण (सुखावह भावों) के धामरूप हैं, ऐसे पार्श्वनाथ भगवान् को मैं नमन करता हूँ ॥ १ ॥ (पार्श्वनाथ-घटित) 'विसहर-फुलिंग' नामक मंत्र का जो मानव हमेशा एकाग्रचित से जप करते हैं उनके नौ ग्रह (एवं भूतावेश) की पीड़ा, अनेकविध (कायिक-मानसिक) रोग, महामारी (प्लेग आदि) और विषम ज्वर दूर हो जाते हैं- मिट जाते हैं ॥२॥ . उस मंत्र की बात को तो एक ओर छोड़ दें, फिर भी हे पार्श्वनाथ भगवन् !, आपको किया गया भावभरा नमस्कार भी बहुत फल देता है। उससे मनुष्य व तिर्यंच-गति के जीव किसी प्रकार के दुःख और दुर्दशा का शिकार नहीं होते ॥ ३ ॥ चिंतामणिरल और कल्पवृक्ष से भी अधिक प्रभावशाली आप का सम्यक्त्व प्राप्त करने से जीव, बिना विन, अजरामर स्थान (मुक्तिपद) को प्राप्त करते हैं ॥ ४ ॥ ८३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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