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________________ -विसहर फुलिंग मंत कंठे धारेइ जो सया मणुओ तस्स गह रोग मारी दुट्ठजरा जंति उवसामं चिट्ठउ दूरे मंतो तुज्झ पणामो वि बहुफलो होइ नर तिरिएसु वि जीवा पावंति न दुक्ख - दोगच्चं तुह सम्पत्ते लद्धे पावंति अविग्घेणं जीवा अयरामरं ठाणं इअ संधुओ महायस भत्तिब्भर - निब्भरेण - जीव प्राप्त नहीं करते हैं दुःख और दौर्गत्य (दुर्दशा) तुम्हारा सम्यग्दर्शन प्राप्त होने पर चिंतामणि- कप्पपायवब्भहिए - चिंतामणि और कल्पपादप ( कल्पवृक्ष) से अधिक Jain Education International - - 'विषहर - फुलिंग' मंत्र को कंठ में धारण ( = रटण) करता है सदैव जो मनुष्य उसका ग्रहपीड़ा, रोग, मारी ( प्लेग, मारण-प्रयोग) विषम ज्वर शांत हो जाते हैं . मंत्र तो दूर रहो आपको किया हुआ प्रणाम भी अति फलदायक होता है मनुष्य व तिर्यंच गति में भी प्राप्त करते हैं निर्विघ्न रूप से जीव (प्राणीगण ) अजर-अमर स्थान इस प्रकार स्तुति - विषयभूत बने हुए हे महायशस्विन ! ( यशवाले) भक्ति के भार से भरे हुए ८२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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