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________________ इस प्रकार हे पार्श्वजिनचन्द्र ! हे महायशस्विन् ! मैंने आपकी भक्तिपूर्ण हृदय से स्तुति की है। अत: हे देवाधिदेव ! इसके प्रभाव से मुझे भवोभव बोधि (= सम्यक्त्व से लेकर वीतरागता पर्यन्त के जैनधर्म की प्राप्ति) प्रदान करो ! ॥ ५ ॥ सूत्र - परिचय (i) उपसर्गों का एवं दुःख-संकटों का हरण करने के कारण, तथा (ii) सूत्र के प्रथम शब्द के कारण, इस सूत्र को 'उवसग्गहरं' सूत्र कहते हैं। .. इस सूत्र में २३ वे तीर्थंकरदेव श्री पार्श्वनाथ भगवान् को वंदना करके उनकी स्तुति की गई है। यहाँ अंत में यह उत्कट प्रार्थना है कि 'मुज से की गई उनकी अथाग भक्ति के प्रभाव से भव-भव में सम्यक्त्व प्राप्त हो।' इससे सूचित होता है कि पहली गाथा से ही दिल में भक्ति ऊछलनी चाहिए। - यह मंत्र-स्तोत्र (मंत्रगर्भित स्तोत्र) है। नवस्मरण में इसका स्थान द्वितीय हैं। स्तोत्र के पदों में मंत्र गुप्त हैं। श्रद्धापूर्वक इस स्तोत्र का नित्य और सतत स्मरण करने से भौतिक तथा आध्यात्मिक दुःख और आपत्ति-पीडाएँ दूर हो जाती हैं। आत्मा में सम्यग्दर्शन आदि का बल बढ़ता है। इस सूत्र के रचयिता श्रुतकेवली आचार्य भगवान् श्री भद्रबाहुस्वामी हैं। ___ इस सूत्र की प्रथम गाथा का विषय-विशिष्टगुणयुक्त प्रभु हैं। दूसरी का विषय-उनका 'विसहर-फुलिंग' मंत्र हैं। तीसरी में उनको किये गए नमस्कार का फल यह विषय है। चौथी का विषय उनके सम्यक्त्व का प्रभाव है । पाँचवी का विषय-भक्तिपूर्वक स्तुति के फल - www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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