SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उक्कोसय सत्तरिसय - उत्कृष्ट १७० जिणवराण - जिनेश्वर विहरंत लब्भइ विचरते मिलते हैं नवकोडिहिं केवलिण - ९ करोड़ केवलज्ञानी के साथ कोडिसहस्स नव साहु - नौ सहस्त्र करोड़ साधु से गम्म - अनुसराते हैं । संपइ - वर्तमान काल में जिणवर वीस - बीस जिनेश्वर देव मुणि बिहुं कोडिहिं वरनाण - दो करोड़ केवलज्ञानी मुनि के साथ समणह कोडि सहस्स दुअ - दो हजार करोड़ साधु के साथ थुणिज्जइ निच्चविहाणि - हमेशा प्रात: स्तवना कराते है ४. जयउ सामिय ! जयउ सामिय ! - स्वामिन् ! जय हो - २ रिसह सत्तुंजि - शत्रुजय पर हे ऋषभदेव ! उज्जिति पहुनेमि जिण - गिरनार पर हे नेमिनाथ प्रभु ! जयउ वीर - हे महावीर ! जयवंता वर्तो सच्चउरी मंडण - हे सत्यपुरी- (सांचोर) के भूषण ! भरुअच्छहिं मुणिसुव्वय - हे भरुच में मुनिसुव्रत स्वामी मुहरिपास - हे (टींटोडा) में मुहरी पार्श्वनाथ ! हे (मुहरिपास - मथुरा में पार्श्वनाथ) दुह-दुरिअ-खंडण - दुःखपापनाशक अवर विदेहि तित्थयरा - हे अन्य देहरहित (स्थापना) तीर्थंकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy