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________________ बंदु जिण सव्वे वि ॥ ५ ॥ सत्ता-णवइ सहस्सा, लक्खा छप्पन्न अट्ठकोडिओ, बत्तीससय बासियाई, तिअ- लोए चेइए वंदे ॥ ६ ॥ पनरस- कोडि-सयाई, कोडी बायाल लक्ख अडवन्ना, छत्तीस - सहस्स- असीई, सासय- बिंबाई पणमामि ॥ ७ ॥ शब्दार्थ १. जगचिंतामणि जगनाह जगगुरु जगरक्खण जगबंधव जगसत्थवाह जगभावविअक्खण २. अट्ठावयसंठविअरूव कम्मट्ठविणासण चउवीसंपि जिणवर जयंतु अप्पsिहसासण ३. पढम संघयणि Jain Education International - - - हे हे जगत् के रक्षक ! हे जगत के हे जगत् के सार्थवाह ! बन्धु ! - - - -- हे जगत के चिंतामणि रत्न ! हे जगत् के नाथ ! हे जगत के गुरु ! ---- हे जगत् के भावों के ज्ञाता ! हे अष्टापद पर स्थापित बिंबवाले हे अष्टकर्म के नाशक ! हे चौवीस भी तीर्थंकर (मेरे दिल में) विजयवंत हो! हे अबाधित शासन वाले हे प्रथम संहनन वाले ६२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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