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________________ चिहुँदिसि विदिसि - चारों दिशा विदिशा में जिंकेवि - जो कोई तीआणागय संपइअ - अतीत-अनागत (भूत, भविष्य), वर्तमान काल में वंदु जिण सव्वेवि - सभी तीर्थंकरों को वंदन करता हूँ सत्ताणवइ सहस्सा - ९७ हजार लक्खा छप्पत्र - ५६ लाख अट्ठकोडिओ - ८ करोड़ बत्तीससय बासियाई __ - ३२८२ तिअलोए - तीनों लोक में चेइए वंदे - जिन मंदिरों को वंदना करता हूँ पनरस कोडि-सयाई- १५०० करोड़ (१५ अरब) कोडी बायाल - ४२ करोड़ लक्ख अडवत्रा - ५८ लाख छत्तीस सहस्स ३६ हजार असीई - ८० सासय बिंबाई - शाश्वत जिन प्रतिमाओं को पणमामि - प्रणाम करता हूँ भावार्थ हे जगत् को इच्छित देने वाले चिंतामणि रल ! हे जगत् के नाथ ! हे जगत् के गुरु ! हे जगरक्षक ! हे विश्वबंधु ! हे विश्व के सार्थपति ! हे जगत् के समस्त पदार्थों का स्वरूप जानने में विचक्षण ! हे अष्टापद पर्वत पर स्थापित प्रतिमावाले ! हे अष्टकर्मों के नाशक ! हे ऋषभादि चौबीस भी (अर्थात् अन्य ६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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