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________________ जीवन की सांध्य-वेला ३४१ उस समय वे अपना अरुण कमल सदृश वाम चरण दाहिनी जंघा पर रखकर विराजमान थे। उस समय जरा नामक व्याध ने जिसने (मछली के पेट से प्राप्त हए) मूसल के बने हुए टकड़े से अपने बाण की गांसी बनाई थी। मग के मुख के सदृश आकार वाले श्रीकृष्ण के चरण को दूर से ही मग समझकर उसी बाण से वेध दिया।३७ ___पास आने पर श्रीकृष्ण को देखकर उनके चरणों में गिर पड़ा,८ "हे मधुसूदन ! मुझ पापी से अनजान में अपराध हो गया है। हे उत्तम श्लोक ! हे अनद्य ! मैं आपका अपराधी हूँ, कृपा करके क्षमा करें।" कृष्ण ने कहा-अरे जरा ! तू डर मत, खड़ा हो, अब तू मेरी आज्ञा से पूण्यवानों को प्राप्त स्वर्ग को जा।३९ श्रीकृष्ण का आदेश पाकर वह व्याध स्वर्ग चला गया। उसके पश्चात् श्रीकृष्ण के चरणचिन्हों को खोजता हुआ सारथि दारुक वहाँ आया, सारथि के देखते ही देखते गरुड़चिन्ह वाला वह रथ घोड़ों सहित आकाश में उड़ गया और उसके पीछे दिव्य आयुध भी चले गये। यह देख सारथि विस्मित हुआ ।४२ श्रीकृष्ण ने कहा-हे सूत ! अब तुम द्वारिकापुरी को जाओ और हमारे बन्धु-बान्धवों को, यादवों के पार. ३६. रामनिर्याणमालोक्य, भगवान् देवकीसुतः । निषसाद धरोपस्थे तूष्णी मासाद्य पिप्पलम् ।। विभ्रच्चतुर्भुजं रूपं भ्राजिष्णु प्रभया स्वया । दिशो वितिमिराः कुर्वन्विधूम इव पावकः ।। –श्रीमद्भागवत ११।३०।२७-२८ ३७. मुसलावशेषायः खण्डकृतेषुलुब्धको जरा। मृगास्याकारं तच्चरणं विव्याध मृगशंकया ।। -श्रीमद्भागवत ११।३०।३३ ३८. श्रीमद्भागवत ११।३०।३४ ३६. श्रीमद्भागवत ११।३०।३६ ४०. , , १३।३०।४० ४१. ॥ ११॥३०॥४१ से ४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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