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________________ ३४० भगवान अरिष्टने मि और श्रीकृष्ण और बलराम भी वृद्ध हो चुके थे। द्वारिका के मदान्ध यादवों पर उनका प्रभाव भी कम हो गया था वहां के समुद्र और रेवत पर्वत के मध्य में अवस्थित प्रभास क्षेत्र में पिंडारक नामक स्थान था, जहां पर स्नान और आमोद-प्रमोद के लिए यादवगण प्रायः जाया करते थे। एक बार वहां विशाल उत्सव का आयोजन था, जिसमें समस्त द्वारिकावासी सामूहिक रूप से उपस्थित हुए थे। वहाँ पर सबने स्नान-क्रीड़ा आमोद-प्रमोद और नृत्य गान किया। फिर मदिरा पान करने के कारण सभी लोग परस्पर वाद-विवाद, लड़ाई-झगड़ा करने लगे ।३२ दुर्दैव से वे उस समय ऐसे मदान्ध हो गए कि आपस में ही लड़कर मर गये। इस प्रकार कौरव-पाण्डवों के गृह-युद्ध में से जो यादव बच रहे थे, वे प्रभास क्षेत्र के उस गृह-कलह में समाप्त हो गए।33 वहां से बचकर आने वालों में कृष्ण, बलराम, दारुक सारथी आदि थे तथा द्वारिका में उग्रसेन, वसुदेव, कुछ स्त्रियाँ और बाल-बच्चे थे। प्रभास क्षेत्र की उस विनाश-लीला के उपरांत वे बहत दुःखी हए और उन्होंने शरीर छोड़ दिया। ऐसे भी उल्लेख प्राप्त होते हैं कि वे क्ष ब्ध होकर समुद्र यात्रा को चले गए थे, जहां से वे पूनः लौटकर नहीं आये३४ और न उनका समाचार ही मिला। कृष्ण दारुक के साथ द्वारिका आये। वहां पहुंचने पर दारुक को रथ लेकर हस्तिनापुर जाने का आदेश दिया और समाचार कहे कि द्वारिका की यह स्थिति हुई है, अतः अर्जुन तत्काल यहां आवे, और यदुवंशियों में बचे हुए वृद्धजनों एवं स्त्री-बच्चों को अपने साथ ले जाय ।३५ श्रीमद्भागवत के अनुसार बलरामजी की परम पद प्राप्ति को देखकर श्रीकृष्ण एक पीपल की छाया में पृथ्वी पर शान्त भाव से मौन होकर बैठ गए। उस समय उनका चेहरा चमक रहा था। ३२. श्रीमद्भागवत, ११ स्कन्ध, अ० ३०, श्लोक १०-१४ । ३३. वहीं० श्लोक १५-से २५ ३४. रामः समुद्रवेलायां योगमास्थाय पौरुषम् । तत्याज लोकं मानुष्यं संयोज्यात्यानमात्मनि ।। -वहीं० श्लोक २६ ३५. देखो व्रज का सांस्कृतिक इतिहास-- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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