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________________ ३४२ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण स्परिक विध्वंस, बलराम जी की परमगति और मेरी दशा का वृत्तांत सुनाओ । अब तुम लोगों को अपने बन्धु-बांधवों सहित द्वारिका में नहीं रहना चाहिए क्योंकि मेरी त्यागी हुई उस यदुपुरी को समुद्र डुबो देगा | सभी लोग अपने अपने धन कुटुम्ब को लेकर अर्जुन के साथ इन्द्रप्रस्थ चले जायें | ४3 फिर श्रीकृष्ण का देहोत्सर्ग हो गया । । वैदिक दृष्टि से द्वारिका का अन्त : वैदिक परम्परा की दृष्टि से जब अर्जुन ने द्वारिका का दुःखदायी समाचार सुना तो वह अत्यन्त मर्माहत हुआ. और दु:खी मन से तत्काल द्वारिका की ओर चल दिया । वहाँ जाने पर उसने द्वारिका के स्त्री बच्चों को और वृद्ध जनों को करुण - क्रन्दन करते देखा । उस समय उग्रसेन और वसुदेव भी अपने शरीर को छोड़कर परलोक प्रस्थान कर चुके थे और उनकी वृद्ध रानियां भी उनके साथ अग्नि में जल गई थीं। कृष्ण और बलराम पहले ही तिरोधान हो चुके थे । प्रभास क्षेत्र में मृत्यु प्राप्त यादवों की पत्नियां भी काफी संख्या सती हो चुकी थीं । उस महाविनाश के पश्चात् द्वारिका में जो यदुवंशी शेष थे उनमें भो वृद्ध, बालक और स्त्रियां ही मुख्य थीं। उनमें कृष्ण के दिवंगत पौत्र अनिरुद्ध का बालक पुत्र वज्र भी था । उन सभी के संरक्षण का भार अर्जुन पर आ पड़ा । अतः वे सभी को लेकर हस्तिनापुर की ओर चल दिये । द्वारिका निर्जन और सूनी हो गई । वहां एक भयंकर तूफान आया, जिसने उस सुन्दर महानगरी को समुद्र के गर्भ में विलीन कर दिया । ४४ इस प्रकार यादवों की प्रबल शक्ति के साथ द्वारिका का भी अन्त हो गया । ४२. इति ब्रुवति सूते वै रथो गरुडलाञ्छनः । खमुत्पपात राजेन्द्र साश्वध्वज उदीक्षतः ॥ तमन्वगच्छन्दिव्यानि विष्णुप्रहरणानि च । तेनातिविस्मितात्मानं सूतमाह जनार्दनः || ४३. श्रीमद्भागवत ११।३०।४६-४८ ४४. श्रीमद्भागवत ११।३१।२३ Jain Education International - श्री मद्भागवत ११।३०।४४-४५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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