SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 313
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्रौपदी का स्वयंवर और अपहरण २८१ शंख-शब्द का मिलाप: राजा पद्मनाभ से युद्ध प्रारंभ करते समय श्रीकृष्ण ने पाञ्चजन्य शंख पूरित किया था। उसकी ध्वनि धातकीखण्ड द्वीप के चम्पानगरी के पूर्ण भद्र उद्यान में, अर्हत् मुनिसुव्रत के पावन-प्रवचन को श्रवण करते हुए कपिल नामक वासुदेव ने सुनी । शंख-शब्द को श्रवण करते ही कपिल वासुदेव के मन में विचार हुआ "क्या यह मानलू कि धातकीखण्डद्वीप के भरतक्षेत्र में दूसरा वासूदेव उत्पन्न हुआ है, जिसके शंख का यह शब्द मेरे ही मुख से पूरित शंख के शब्द की भाँति विलास पा रहा है ? क्या यह किसी अन्य वासुदेव का शंखनाद नहीं है ?"१७ __अर्हत् मुनिसुव्रत ने कपिल के मन का समाधान करते हुए कहा--कपिल वासुदेव ! तुम्हारे अन्तर्मानस में इस प्रकार विचार उबुद्ध हुए हैं । 'क्या मैं यह मानू कि भरतक्षेत्र में दूसरा वासुदेव उत्पन्न हुआ है, जिसका यह शंख शब्द सुनाई दे रहा है, क्या यह सत्य है ? कपिल वासुदेव-हाँ भगवन् ! आपने जो कहा वह ठीक है। अर्हत्मनि सुव्रत ने स्पष्टीकरण करते हुए कहा-निश्चयतः न कभी भूतकाल में ऐसा हुआ है न वर्तमान में हो रहा है और न भविष्य में होगा ही कि एक ही युग में, एक ही समय में, दो अरिहंत, दो चक्रवर्ती, दो बलदेव, दो वासुदेव हुए हों, होते हों, या होंगे।" यह १६. (क) ज्ञाताधर्म कथा अ० १६ (ख) क्षम्यतां देवि रक्षास्मादन्तकादिव शाङ्गिणः । इति जल्पन ययौ पद्मः शरणं द्रपदात्मजाम् ।। साप्यूचे मां पुरस्कृत्य स्त्रोवेशं विरचय्य च । प्रयाहि शरणं कृष्णं तथा जीवसि नान्यथा ।। –त्रिषष्टि० ८।१०६०-६३ (ग) पाण्डवचरित्र सर्ग १७, पृ० ५३७-५४६ (घ) हरिवंशपुराण ५४।४२-५१, पृ० ६१२ १७. (क) ज्ञाताधर्म कथा अ० १६ (ख) त्रिषष्टि० ८।१०।६५-६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy