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________________ २८० भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण प्रहार करने लगे । अमरकंका नगरी के प्राकार, गोपुर, अट्टालिकाएँ चरिया, तोरण, आदि सभी भूमिसात् होने लगे। उसके श्रेष्ठ महल और श्रीगृह चारों ओर से ध्वस्त हो धराशायी हो गये।१५।। राजा पद्मनाभ का कलेजा कांपने लगा। वह भयभीत बना हुआ, द्रौपदी के पास गया और उसके चरणों में गिर पड़ा। . द्रौपदी ने कहा-क्या तुम यह जान गये कि कृष्ण वासुदेव जैसे उत्तम पुरुष का अप्रिय करके मुझे यहाँ लाने का क्या परिणाम है ? अस्तु, अब भी शीघ्र जाओ, स्नानकर, गीले वस्त्र पहन, वस्त्र का एक पल्ला खुला छोड़, अन्तःपुर की रानियों के साथ श्रेष्ठ रत्नों की भेंट ले और मुझे आगे रखकर कृष्ण वासुदेव को हाथ जोड़ उनके चरणों में झुककर उनकी शरण ग्रहण करो। पद्मनाभ द्रौपदी के कथनानुसार कृष्ण वासुदेव का शरणागत हआ। दोनों हाथ जोड़कर पैरों पर गिर पड़ा और निवेदन करने लगा-'हे देवानुप्रिय ! मैं आपके अपार पराक्रम को देख चुका । मैं आपसे क्षमा याचना करता हूँ। मुझे क्षमा करें, मैं पूनः ऐसा कार्य कभी नहीं करूगा।' ऐसा कह उसने द्रौपदी देवी को कृष्ण वासुदेव को सौंप दिया। ___ कृष्ण बोले-हे अप्राथित की प्रार्थना करने वाले पद्मनाभ ! तू मेरी बहिन द्रौपदी को यहाँ लाया है तथापि अब तुझे मुझसे भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। कृष्ण द्रौपदी को साथ ले, रथ पर आसीन हो, जहां पर पाँचों पाण्डव थे वहाँ गये और अपने हाथों से पाण्डवों को द्रौपदी सौंपी।१६ १५. समुद्घातेन जज्ञे च नरसिंहवपुर्हरिः । क्रु द्धोऽन्तक इव व्यात्ताननदंष्ट्राभयंकरः ।। नर्दन्नत्यूजितं सोऽथ विदधे पाददर्दरम् । चकंपे वसुधा तेन हृदयेन सह द्विषाम् ॥ प्राकाराग्राणि बभ्रंसुः पेतुर्देवकुलान्यापि । कृट्टिमानि व्यशीर्यन्त शाङ्गिणः पाददर्दरैः ।। –त्रिषष्टि ० ८।१०।५६-५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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