SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 314
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८२ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण बताकर उन्होंने द्रौपदी के अपहरण व उद्धार की कहानी सुनाते हुए कहा-'कृष्ण वासुदेव ने राजा पद्मनाभ के साथ युद्ध करते समय जो शंख फूका उसी का शब्द तू ने सुना है। वह तुम्हारे मुख से पूरित शंख-शब्द के समान इष्ट और कान्त था, तथा उसी तरह विलास पा रहा था।" यह सुनते ही कपिल वासुदेव उठे और भगवान् को वन्दननमस्कार कर बोले-भगवन् मैं जाता हूँ उस उत्तम पुरुष कष्ण वासुदेव को देखगा। अर्हत् मुनिसुव्रत ने फरमाया-देवानुप्रिय ! यह न कभी हुआ है, न होता है और न होगा ही कि एक अर्हत् दूसरे अर्हत् को देखें, एक चक्रवर्ती दूसरे चक्रवर्ती को देखें, एक बलदेव दूसरे बलदेव को देखें, या एक वासुदेव दूसरे वासुदेव को देखें । तथापि तुम लवणसमुद्र के बीचोबीच जाते हुए कृष्ण वासुदेव की श्वेतपीत ध्वजा का अग्र भाग देख सकोगे।" कपिल वासुदेव ने मुनिसुव्रत को पुनः वन्दन नमस्कार किया और हस्ती पर आरूढ़ हो, शीघ्रातिशीघ्र वेलाकूल पहुचे । उन्होंने भगवान् के कहे अनुसार कृष्ण वासुदेव की श्वेतपीत ध्वजा के अग्रभाग को देखा और बोले-" यह मेरे समान उत्तम पुरुष कृष्ण वासूदेव हैं जो लवणसमुद्र के बीचोंबीच में होकर जा रहे हैं। ऐसा कहकर उन्होंने उसी समय पाञ्चजन्य शंख को हाथ में ले मुख को वायु से पूरित किया। कृष्ण वासुदेव ने कपिल वासुदेव के शंख शब्द को सुना । उन्होंने भी अपने पांचजन्य शंख को मुह की हवा से प्ररित कर बजाया। इस प्रकार दोनों वासुदेवों के शंख शब्द का मिलाप हआ।१८ जो जैन परम्परा में एक आश्चर्य जनक घटना मानी गयी है। उसके पश्चात् कपिल वासुदेव अमरकंका नगरी पहुँचे । उन्होंने पद्मनाभ को भर्त्सना की। उसे निर्वासित कर उसके स्थान पर उसके पुत्र को राज्य दिया।१९ । १८. त्रिषष्टि० ८।१०।६८-७३ १६. (क) त्रिषष्टि० ८।१०।७४-७५ ख) पाण्डवचरित्र-देवप्रभसूरि सर्ग १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy