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________________ जरासंध का युद्ध २५५ अरिष्टनेमि की स्वीकृति : __ शुभचन्द्राचार्य ने पाण्डव-पुराण में लिखा है-जरासंध विराट सेना लेकर युद्ध के लिए आ रहा है, नारद से यह समाचार जानकर श्रीकृष्ण ने नेमिकुमार से अपनी विजय के सम्बन्ध में पूछा । नेमीश्वर ने मन्दहास्यपूर्वक 'ओम' कहकर इस युद्ध में प्राप्त होने वाली विजय की सूचना दी। श्री कृष्ण युद्ध के लिए समुद्यत हो गये । किन्तु प्रस्तुत वर्णन, त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, भवभावना, हरिवंश पुराण, उत्तर पुराण आदि अन्य ग्रन्थों में नहीं है । श्वेताम्बर ग्रन्थों के अनुसार तो नेमिनाथ उस समय गृहस्थाश्रम में थे, वे उस युद्ध में साथ रहे हैं, अतः उनके द्वारा स्वीकृति देना संभव हो सकता है, क्योंकि वे गृहस्थाश्रम में तीन ज्ञान के धारक थे। वे यह भी जानते थे कि प्रतिवासुदेव के साथ वासुदेव का युद्ध अनिवार्य रूप से होता ही है । प्रतिवासुदेव पराजित होते हैं और वासुदेव की विजय होती है। श्री कृष्ण का द्वारिका से युद्ध के लिए प्रस्थान : श्रीकृष्ण भी बलराम, अरिष्टनेमि, व अपने अन्य परिजनों के साथ द्वारिका से युद्ध के लिए प्रस्थित हुए।" उन्होंने द्वारिका से पैंतालीस योजन दूर सेनपल्ली में पड़ाव डाला। उससमय विद्याधर आदि आये और उन्होंने समुद्र विजय अदि से प्रार्थना की कि हम आपके साथ ४. निर्हेतुसमरप्रीतो माधवं नारदोऽब्रवीत् । जरासंधमहाक्षोभं वैरिविध्वंसकारकम् ॥ मुरारिरपि नेमीशमभ्येत्य पुरतः स्थितः । अप्राक्षीत्क्षिप्रमात्मीयं जयं शत्रु क्षयोद्भवम् ।। नेमिनम्रामराधीशो विष्णुमोमित्यभाषत । स्मिताद्य : स्वजयं ज्ञात्वा योद्ध, विष्णुः समुद्ययौ। -पाण्डव पुराणम् १६।१२-१४, पृ० ३६०-३६१ ५. त्रिषष्टि० ८।७।१५७-१९५ ६. पंचचत्वारिंशतं तु योजनानि निजात् पुरात् । गत्वा तस्थौ सेनपल्यां ग्रामे संग्रामकोविदः ।।। -त्रिषष्टि० ८ । ७ । १६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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