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________________ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण व्यापारी - द्वारिका समुद्र के किनारे है और वहाँ पर वसुदेव के पुत्र श्री कृष्ण राज्य कर रहे हैं। उनके भाई बलराम है। नगरी क्या है, स्वर्ग की अलकापुरी है । २५४ यह सुनते ही जीवयशा चौंकी । उसके आश्चर्य का पार न रहा । क्या मेरे पति कंस को मारनेवाला श्रीकृष्ण अभीतक जीवित है ? वह मरा नहीं है ? वह रोने लगी तो जरासंध ने कहा- पुत्री रो मत! मैं अभी जाता हूँ और यादव कुल का समूल नाश कर देता हूँ । यह आश्वासन देकर और विराट् सेना लेकर जरासंध युद्ध के लिए प्रस्थित हुआ । अपशकुन होने पर भी वह आगे से आगे बढ़ता रहा । ३. विभिन्न ग्रन्थों में प्रस्तुत वर्णन प्रकारान्तर से आया है, जो संक्ष ेप में इस प्रकार है उत्तरपुराण के अनुसार यह कथा इस प्रकार है कुछ व्यापारी जलमार्ग से व्यापार करते हुए भूल से द्वारवती नगरी पहुँचे, वहां की विभूति को निहार कर वे आश्चर्यचकित हुए, उन्होंने द्वारवती नगरी से बहुत से श्रेष्ठ रत्न खरीदे । और उन्होंने वे रत्न राजगृह नगरी में जरासंध को अर्पित किये, बहुमूल्य रत्नों को देखकर जरासंध ने चकित होकर पूछा- कहां से लाये ? उन्होंने द्वारवती का विस्तार से वर्णन किया ? —-उत्तरपुराण—७१।५२ - ६४ पृ० ३७८-६ । हरिवंशपुराण के अनुसार जरासंध राजा के पास अमूल्य मणिराशियों के विक्रयार्थ एक वणिक पहुँचा । —५०, १-४ । शुभचन्द्राचार्य प्रणीत पाण्डव-पुराण में एक समय किसी विद्वान् पुरुष ने राजगृह नगर पहुँच कर जरासंध राजा को उत्तम रत्न अर्पित i किये। राजा के पूछने पर उसने बताया कि मैं द्वारिकापुरी से आया हूँ | वहां भगवान् नेमिनाथ के साथ कृष्ण राज्य करते है । इस प्रकार उसके कथन से द्वारिका में यादवों के स्थित होने के समाचार को जानकरके जरासंध को उन पर बहुत ही क्रोध हुआ । वह उनके ऊपर आक्रमण करने की तैयारी करने लगा । - पाण्डवपुराणम् १६८११, पृ० ३६० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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