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________________ २५६ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण मिलना चाहते हैं, भविष्य में हम आपके नेतृत्व में रहेंगे। यद्यपि आपके कूल में श्री कृष्ण जैसे बलिष्ट महापुरुष हैं जो अकेले ही जरासंध को जीतने में समर्थ हैं और भगवान् अरिष्टनेमि भी आपके कुल में हैं । यद्यपि आपको किसी अन्य की सहायता की आवश्यकता नहीं है, किन्तु जरासंध की सहायता में कुछ बलवान् खेचर-विद्याधर आने वाले हैं अतः उन्हें रोकने के लिए वसुदेव के नेतृत्व में प्रद्युम्न व शाम्बकूमार आदि को हमारे साथ भेजिए, जिससे उनमें से एक भी यहाँ तक न आसके। यह सुनकर समुद्रविजय ने वैसा ही किया। अरिष्टनेमि ने उस समय अपनी भुजा पर जन्मस्नात्र के समय देवताओं ने जो अस्त्रवारिणी औषधि बाँधी थी वह वसुदेव को दो ।' जरासंध के साथ युद्ध : उस समय मगधपति जरासंध को उसके मंत्री हंसक ने निवेदन किया-हे राजन ! पूर्व में कंस ने बिना विचारे कार्य किया जिसका कट परिणाम हम लोगों को भोगना पड़ा है। श्रीकृष्ण की सेना में स्वयं कृष्ण के अतिरिक्त नेमिनाथ, बलराम, दशाह, व पाण्डव आदि महान् योद्धा हैं, पर हमारी सेना में आपके अतिरिक्त कौन वीर है जो उन वीरों से जझ सके ? अतः हम मन्त्रियों की नम्र प्रार्थना है कि कृष्ण के साथ युद्ध न किया जाय । जरासंध ने उसका तिरस्कार करते हुए कहा-ज्ञात होता है कि कृष्ण ने तुझे रिश्वत दी है। इसी कारण तू ऐसा बोल रहा है। हंसक व अन्य मन्त्रियों के समझाने पर भी जरासंध न समझ सका। उसने अपने सैन्य को चक्र-व्यूह रचने का आदेश दिया।" ___ श्रीकृष्ण ने गरुड़व्यूह की रचना की । २ भ्रातृस्नेह से उत्प्रेरित होकर अरिष्टनेमि युद्ध स्थल पर साथ में आये हैं, यह जानकर ७. त्रिषष्टि० ८ । ७ । १६७-२०५ ८. त्रिषष्टि० ८ । ७ । २०६ ६. त्रिषष्टि० ८ । ७ । २०७-२२५ १०. त्रिषष्टि० ८।७। २२६ ११. त्रिषष्टि ० ८ । ७ । २२७-२३२-२४१ १२. त्रिषष्टि० ८ । ७ २४२-२६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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