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________________ २०३ गोकुल और मथुरा में श्रीकृष्ण पूजा का बहाना लेकर गोकुल में जाती रहती है ।१४ पुत्र के दिव्य तेज को देखकर उसकी प्रसन्नता दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगती है। कृष्ण के कान्तिमय श्याम रूप को देख कर बालक का नाम श्रीकृष्ण रखा जाता है ।१५ ___ जैन और वैदिक दोनों ही परम्परा के ग्रन्थों में श्रीकृष्ण के अलौकिक व्यक्तित्व और कृतित्व को बताने वाली बाल्यकाल की अनेक चामत्कारिक घटनाए लिखी गई हैं। वे सारी घटनाए ऐतिहासिक ही हैं, ऐसा निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। हम यहाँ इतना ही बताना चाहते हैं कि वे घटनाए जैन और वैदिक ग्रन्थों में किस-किस रूप में आयी हैंशकुनी और पूतना : त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र व भव-भावना के अनुसार सूर्पक विद्याधर की पुत्री शकुनी और पूतना ये दोनों वसुदेव की विरोधिनी थीं। उन्हें किसी तरह ज्ञात हो गया था कि कृष्ण वसुदेव का पुत्र है अतः श्रीकृष्ण को मारने के लिए वे गोकुल में आयीं । शकुनी ने श्रीकृष्ण को जोर से दबाया, भय उत्पन्न करने के लिए जोर से कर्णकट किलकारियां की, किन्तु कृष्ण डरे नहीं अपितु उन्होंने शकुनी को १४. (क) वसुदेव हिण्डी देवकी लम्भक अनुवाद पृ० ४८३ (ख) ततोऽन्विता बहुस्त्रीभिः सर्वतोगोपथेन गाः । __ अर्चन्ती गोकूलं गच्छेवक्य पि तथाकरोत् ॥ श्री वत्सलांछितोरस्कं नीलोत्पलदलद्यु तिम् । उत्फुल्लपुडरीकाक्ष चक्राद्यककरक्रमम् ॥ नीलरत्नमिवोन्मृष्टं यशोदोत्संगवर्तिनम् । ददर्श हृदयानंद नंदनं तत्र देवकी ।। –त्रिषष्टि० ८।५।११६-१२१ (ग) भव-भावना गा० २२०१-२२०४ १५. त्रिषष्टि० ८।५।११६ १६. (क) त्रिषष्टि० ८।५।१२३-१२६ (ख) भव-भावना गा० २२०६ से २२१० पृ० १४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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