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________________ कंस : एक परिचय १६३ सात गर्भ जन्मते ही आप मुझे दे दें।२५ सरलहृदय वसुदेव कंस के कपट को नहीं समझ सके। उन्होंने सोचा-कंस के कारण हो मेरा देवकी के साथ पाणिग्रहण हुआ है, अतः यह जब मांगता है तो मुझे दे देना चाहिए। उन्होंने कंस के कहे अनुसार अभिवचन दे दिया कि सातों पुत्र जन्मते ही तुम्हारे अधीन होंगे ।२६ कंस वसुदेव से वचन लेकर बहुत प्रसन्न हुआ। मुनि की भविष्यवाणी नहीं जानने वाली देवकी ने भी कहा-भाई ! तुम्हारी इच्छा के अनुसार ही होगा । वसुदेव और तुम्हारे पुत्र में कोई अन्तर नहीं है, हमारा दोनों का सम्बन्ध भी तुम्हारे कारण ही तो हुआ है। वसुदेव कंस को वचन देकर जब घर पर पहुँचे तब उन्हें अतिमुक्त मुनि की भविष्यवाणी का पता चला। उन्हें विचार आयामधुर शब्द बोलकर कंस ने मुझे ठग लिया है, पर अब क्या हो सकता था !२७ वैदिक परम्परा के संदर्भ में : वैदिक परम्परा के ग्रंथों के अनुसार से एकबार मथुरा नगरी में वसुदेवजी देवकी के साथ विवाह कर अपने घर जाने के लिए प्रस्थित हुए। उस समय राजा उग्रसेन का पूत्र कंस ने उन्हें स्वर्णमण्डित रथ में बैठाकर बहिन देवकी की प्रसन्नता के लिए घोड़ों की रास पकड़ ली। ___महाराजा देवक ने कन्या को विदा करते समय स्वर्णमाला से विभूषित चार सौ हाथी, पन्द्रह हजार घोड़े, अठारह सौ रथ तथा विचित्र वस्त्राभूषणों से विभूषित दो सौ सुकुमार दासियां दहेज में दीं।२८ मार्ग में जिस समय कंस देवकी का रथ चला रहा था उस २५. सप्तेतो देवकी गर्भाञ्जामानान्ममार्पयेः । वसुदेवोऽप्यूजुमनास्ताथा प्रत्यपद्यत ॥ -त्रिषष्टि० ८।५।७७ से ८३ २६. त्रिषष्टि० ८।५।८४-८६ २७. उग्रसेनसुतः कंसः स्वसुः प्रियचिकीर्षया । रश्मीन्हयानां जग्राह रोक्मै रथशतैर्वृतः ।। –श्रीमद्भागवत १०।१।३०, पृ० २१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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