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________________ १६२ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण पर यहाँ पर आये हो । अच्छा हो तुम मेरे साथ नृत्य करो, गायन करो !' वह मुनि से उच्छल मजाक करने लगी ।२१ मुनि बहत समय तक उसका अभद्र व्यवहार देखते रहे, चंदन शीतल होता है पर चन्दन को यों ही घिसा जाय तो उसमें से भी आग पैदा हो जाती है । मुनि स्वभावतः शान्त होते हैं, पर अधिक कष्ट देने पर उन्हें भी कभी-कभी क्रोध आ जाता है। ज्ञानी अतिमुक्त मुनि ने रोष में कह दिया-अरे जीवयशा ! जिसके निमित्त यह उत्सव मनाया जा रहा है, उसका सातवां गर्भ तेरे पिता और पति को मारने वाला होगा ।२२ मुनि की गंभीर घोषणा सुनते ही जीवयशा का मद उतर गया। उसने मुनि को छोड़ दिया२3 मनि चले गये । जीवयशा ने शीघ्र हो कंस के पास पहुंच कर आंखों से आंसू को बरसाकर मुनि की भविष्यवाणी सुनाई। मनि की भविष्यवाणी को सुनकर कंस भी एक बार कांप उठा। क्योंकि मुनि की वाणी कभी भी मिथ्या नहीं होती२४, दूसरे ही क्षण उसने सोचा-- जब तक यह बात प्रकट नहीं हो जाती तब तक मुझे पूरा प्रबन्ध कर लेना चाहिए। वसुदेव से देवकी के सातों गर्भ मुझे मांग लेने चाहिए। कंस सीधा वसूदेव के पास गया और उसने अत्यन्त नम्रता के साथ वसुदेव से कहाआप तो मेरे महान् उपकारी हैं । आपने ही शस्त्र विद्या आदि मुझे सिखाई है। आपने ही मेरा जीवयशा के साथ विवाह कराया। अब मेरी एक इच्छा की पूर्ति करने की कृपा करें। वह यह कि देवकी के २१. (क) साधूत्सव दिनेऽमुष्मिन् देवरासि समागतः । नृत्य गाय मया सार्धमित्यादि बहुधा तया ।। -त्रिषष्टि० ८।५।७१ ' (ख) वसुदेव हिण्डी २२. सोऽपि ज्ञानी शशंसैवं यन्निमित्तोऽयमुत्सवः । तद्गर्भः सप्तमो हंता पतिपित्रोस्त्वदीययोः ।। -त्रिषष्टि० ८।५।७४ २३. तां वाचौं स्फुर्जथुनिभां श्रुत्वा जीवयशा द्रुतम् । भयाद् गतमदावस्था तं मुमोच महामुनिम् ॥ -त्रिषष्टि० ८.१७५ २४. त्रिषष्टि० ८।१७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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