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________________ १६४ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण समय उसे यह आकाशवाणी सुनाई दी---अरे मूर्ख ! जिसको तू रथ में बैठाकर ले जा रहा है उसी देवकी का आठवां बालक तुझे मारेगा।२९ आकाशवाणी सुनते ही कंस देवकी को मारने के लिए उद्यत हो गया। उसने उसी समय देवकी के केश पकड़ लिए।३° उस समय कंस को महाक्रू र कर्म करते हुए देखकर वसुदेव ने कंस को समझाते हुए कहा- इस समय इसे मारना उचित नहीं है । हे सौम्य ! इस देवकी से तो आपको कुछ भी भय नहीं है, अतः जिन पुत्रों से आपको भय है, वे सभी पुत्र मैं आपको सौंप देता हूँ।३२ इस प्रकार वसुदेव ने उस समय दक्षता से कार्य किया। एक महान् अनर्थ होने जा रहा था उसे बचा लिया। कंस ने अपनी बहिन को मारने का संकल्प छोड़ दिया।33 २८. चतुः शतं पारिबर्ह गजानां हेममालिनाम् । अश्वानामयुतं साधू रथानां च त्रिषट् शतम् ॥ दासीनां सुकुमारीणां द्वे शते समलंकृते । दुहित्रे देवकः प्रादाद्याने दुहितवत्सलः ।। --- श्रीमद्भागवत १०।१।३१-३२, पृ० २१६ २६. पथि प्रग्रहिणं कंसमाभाष्याहाशरीरवाक् । अस्यास्त्वामष्टमो गर्भो हन्ता यां वहसेऽबुध । -श्रीमद्भागवत १०।११३४ ३०. इत्युक्तः स खलः पापो भोजानां कुलपांसवः । भगिनीं हन्तुमारब्धः खङ्गपाणिः कचेऽग्रहीत् ।। ३५ । ३१. तं जुगुप्सितकर्माणं नृशंसं निरपत्रपम् ।। वसुदेवो महाभाग उवाच परिसान्त्वयन् ।। ३६ । ३२. नास्यास्ते भयं सौम्य ! यद्वै साहाशरीरवाक् । पुत्रान्समर्पयिष्येऽस्या यतस्ते भयमुत्थितम् ।। ५४ । ३३. स्वसुर्वधान्निववृते कसस्तद्वाक्यसार वित् । वसुदेवोऽपि तं प्रीत: प्रशस्य प्राविशद्गृहम् ।। ५५ । -सभी उद्धरण श्रीमद्भागवत १०११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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