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________________ 107 - __ आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह निर्मोही आत्म स्वभाव, तुम सम पहिचाना। नायूँ दुर्मोह विभाव, प्रभु निजपद जाना ।। हे सम्भवनाथ जिनेश ! पूँजों सुखदायी। हे प्रभु तुम चरण प्रसाद, आतम निधि पाई।। ॐ ह्रीं श्री संभवनाथजिनेन्द्राय मोहांधकारविनाशनाय दीपं नि. स्वाहा। धूपायन काया माँहिं, अग्नि ध्यानमयी। हो ज्वलित कर्म विनशाहिं, वर्तुं ज्ञानमयी।।हे सम्भव...॥ ॐ ह्रीं श्री संभवनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मविनाशनाय धूपं नि. स्वाहा। प्रभु प्रभुता पूर्ण निहार, परमानन्द हुआ। प्रभु पूजक भेद विडार, जाननहार हुआ॥हे सम्भव... | ॐ ह्रीं श्री संभवनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। इन्द्रादिक पद निस्सार, भासे दुखकारी। पाऊँ अनर्घ पद सार, अविचल अविकारी हे सम्भव...॥ ॐ ह्रीं श्री संभवनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अयं नि. स्वाहा। पंचकल्याणक अर्घ्य (तर्ज - घड़ी जिनराज दर्शन की..., तुम्हारे दर्श बिन...) अहो ! फागुन सुदी आठे, खोलते कर्म की गाँठे। नाथ जब गर्भ में आये, जजत इन्द्रादि हर्षाये। ॐ ह्रीं फाल्गुनशुक्ल अष्टम्यां गर्भमंगलमंडिताय श्री सम्भवनाथजिनेन्द्राय अयं..। पूर्णिमा कार्तिकी सुखमय, जन्मकल्याण मंगलमय। भव्य बहुमान से पूजें, पूजते कर्म रिपु धूजें। ॐ ह्रीं कार्तिकशुक्लपूर्णिमायां जन्ममंगलमंडिताय श्री सम्भवनाथजिनेन्द्राय अयं..। पूर्णिमा मगसिरी आई, धरी दीक्षा सु सुखदाई। किया कचलौंच प्रभु ऐसे, कर्म लौंचे हों जिन जैसे। ॐ ह्रींमार्गशीर्षशुक्लपूर्णिमायां तपोमंगलमंडिताय श्री सम्भवनाथजिनेन्द्राय अयं..। चतुर्थी कृष्ण कार्तिक को, प्रभु नाशा घातिया को। हुआ केवल सु मंगलमय, पूजते नष्ट हो भव भय । ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णचर्तुथ्यां ज्ञानमंगलमंडिताय श्री सम्भवनाथजिनेन्द्राय अयं नि.। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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